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Wednesday, 22 August 2018

"वेब एलियन्स" : प्रो. रमेश पाठक द्वारा रचित रेडियो नाटक

मानव और ब्रहमाण्ड के अंतर्संबंधों की रचनात्मक रूपरेखा
अभी हाल ही में आकाशवाणी, पटना से तेरह किस्तों में प्रसारित प्रो. रमेश पाठक का विज्ञान-कल्पना पर आधारित नाटक 'वेब एलियंस' श्रोताओं द्वारा बहुत पसंद किया गया. लोग हर कड़ी के बाद यह जानने को बेचैन रहते थे कि अगली कड़ी में क्या होगा. बिहारी धमाका ब्लॉग द्वारा इस हेतु जानकारी लेने को हेमन्त दास 'हिम' को भेजा गया. प्रस्तुत है इस अनोखे काल्पनिक विज्ञान कथा के बारे में जानकारियाँ.


जंतुविज्ञान के प्राध्यापक प्रो. रमेश पाठक को यह ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाय जिससे विविध प्रकार के वैज्ञानिक ज्ञान को रोचकता के साथ और कुछ कल्पनात्मक पुट देते हुए लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया जाय. और यहीं बीज उत्पन्न हुआ 'वेब एलियंस' का.

वेब एलियंस दर-असल प्रो. रमेश पाठक लिखित साइंस फिक्शन पर आधारित एक रेडियो-नाटक है. इस नाटक की परिकल्पना एवं शोध भी प्रो. पाठक के द्वारा ही किया गया है. हाल ही आकाशवाणी पटना से जनवरी से अप्रील माह तक तेरह कड़ियों में इसका प्रसारण किया गया.

इस नाटक में ऐसे एलियन्स यानी ब्रह्माण्ड जीव की कल्पना की गई है जिसके सभी क्रियाकलाप एवं जीवन सम्बंधी सभी कार्य वेब यानी तरंग के माध्यम से ही होते हैं. उनके लिए ऊर्जा के स्रोत भी वेब हैं. उनके द्वारा संवाद भी वेब्स के द्वारा ही होता है लेकिन उन्हें ग्रहण करने के लिए उनके पास कोई संवेदी अंग नहीं हैं. इनके शरीर का निर्माण करनेवाली संरचनाएँ यानी एलिसेल ही आवश्यकतानुसार वेब्स का उपयोग या रुपान्तरण करती है. 

इस वैज्ञानिक नाटक में जीव विज्ञान के अलावा विज्ञान की अन्य शाखाओं यथा भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान के सिद्धान्तों को भी समाहित किया गया है. इनके साथ-साथ ज्योतिष विज्ञान एवं अध्यात्म का भी चित्रण है. इसमें हमारे देश की पौराणिक विज्ञान परम्परा का अद्भुत चित्रण है. साथ ही यह मुद्दा भी उठाया गया है कि हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा किये गए अनुसन्धान हमारे देश के द्वारा विदेशों में क्यों नहीं प्रसारित हुआ और क्यों विदेशियों ने उन्हीं अनुसन्धानों का श्रेय ले लिया. इस नाटक में ब्रह्माण्ड के निर्माण के सम्बंध में नई परिकल्पना है. साथ ही साथ भविष्य में मानव और ब्रह्माण्ड के नए रिश्तों और सम्बंधित अनुसंधान की भी परिकल्पना की गई है. बिना उपकरण के संचार की परिकल्पना है. नाटक में ज्ञान की बातों के अलावा उतार-चढ़ाव बहुत है. इसके रहस्य इसे रोमांचक बनाते हैं. बीच-बीच में ऐसे संवाद हैं जो रोमांच के साथ-साथ हास्य का भी निर्माण करते हैं.
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प्रो. रमेश पाठक की हेमन्त दास 'हिम' से बातचीत पर आधारित
प्रो. रमेश पाठक ए.एन. कॉलेज, पटना में जन्तुविज्ञान के विभागाध्यक्ष हैं और एक सजग लेखक एवं कवि हैं. ये हिन्दी और भोजपुरी दोनो में रचनाएँ करते हैं. इनकी अनेक कविताएँ, कहानियाँ अखबारों, पत्रिकाओं, दूरदर्शन और आकाशवाणी में आ चुकी हैं.

प्रो. रमेश पाठक रचित काव्य संग्रह का कवर








Tuesday, 21 August 2018

आखर द्वारा 20.8.2013 को डॉ.तैयब हुसैन पीड़ित से वार्तालाप

भोजपुरी हिन्दी की उपभाषा नहीं बल्कि उसकी मौसी है
मॉरीशस में भोजपुरी देवनागरी की बजाय रोमन में लिखी जाने लगी है




मौलिक सोच की अभिव्यक्ति मातृभाषा में ही संभव है । ज्ञान- विज्ञान का अविष्कार अर्जित भाषा में संभव नही है। जगदीशचंद बोस हो या जापान-चीन ने मातृभाषा में ही अपना सारा काम किया है। यह बात भोजपुरी के वरिष्ठ लेखक डॉ तैयब हुसैन पीड़ित ने श्री सिमेन्ट द्वारा प्रायोजित तथा आखर एवं मसि इंक द्वारा आयोजित बातचीत में कही। बातचीत युवा लेखक डॉ जीतेन्द्र वर्मा ने की। उन्होंने भोजपुरी की स्थिति पर प्रकाश डाला।भोजपुरी हिंदी की उपभाषा है ये गलत तथ्य है भोजपुरी हिंदी की मौसी है।

भोजपुरी के पास एक व्यापक लोक साहित्य है जिसमें रोपनी, कटनी के गीत, विवाह, जन्म, मरण, बिछोह सब के गीत है। जीवन के सारे रंग के गीत भोजपुरी में है। भोजपुरी कवि के इतिहास के बारे में उन्होंने कहा कि अनिरुद्ध जी, सतीश्वर प्रसाद सहाय, हिलेश कैलाश (भोजपुरी के पहले प्रोफेसर) तिकड़ी रही है। भोजपुरी के गद्य साहित्य के बारे में उन्होंने कहा कि 1960 के बाद हिंदी साहित्य में मोहभंग पर कविता कहानी है लेकिन भोजपुरी में उससे पहले सबकुछ मौजूद है। भोजपुरी में गदर भी लिखा गया है।

भूमंडलीकरण का प्रभाव भोजपुरी पर किस प्रकार है इस बारे में उन्होंने बताते हुए कहा कि बेबी क्रिस्टर के अनुसार 3000 से 10000 भाषा, बोली है । 1951 के जनगणना के अनुसार भारत में तत्कालीन 782 भाषाएं थी जबकि 1961 में ये बढ़कर 1652 भाषाएं हो गयी। बोली से भाषा बनने का उपक्रम राजनीतिक ज्यादा रहा है। पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने हिंदी दिवस में कहा कि भोजपुरी को अष्टम अनुसूची में देना हिंदी के लिए खतरनाक है। इस देश में जानवर, पंछी, झंडा सब है लेकिन राष्ट्रीय भाषा नहीं है । राजनीतिक दबाब के कारण भाषा में ईमानदारी नहीं है।

आधुनिक समय में भोजपुरी मजबूरी की भाषा बन गयी है। मॉरीशस में भोजपुरी देवनागरी के बदले रोमन लिपि में लिखी जाने लगी है। तकनीकी शिक्षा में भोजपुरी का उपयोग हो तो भाषा बच सकती है। प्रारम्भिक शिक्षाएं स्थानीय भाषाओं में होनी चाहिए । 20 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते है लेकीज अष्टम अनुसूची में ये भाषा नहीं है। भोजपुरी में एकजुटता नहीं है इसीलिए संघर्ष नहीं हो पाया रहा है। भोजपुरी में भिखारी ठाकुर के बारे में लेखक के बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने भोजपुरी में लोक गीत की परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने भिखारी ठाकुर के लिखे गीतों का मर्म लोगों को समझाया।

प्रसिद्ध नाटककार भिखारी ठाकुर को अकादमी मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले डॉ तैयब हुसैन ने कहा कि बिदेसिया शैली  नहीं, परंपरा है। भिखारी ठाकुर ने समाज के बड़े सच को सामने लाया है। नारी जीवन और मजदूर का वियोग उनके साहित्य में अभियुक्त हुआ है। समारोह में डॉ ब्रजभूषण मिश्र, डॉ महामाया प्रसाद विनोद, अनीश अंकुर, विभारानी श्रीवास्तव, जयप्रकश एन.के.नंदा, तुषार उपाध्याय, शिवदयाल अविनाश गौतम, जय प्रकाश आदि लोगों ने अपने बात रखे।
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आलेख- सत्यम कुमार
ईमेल- satyam.mbt@gmail.com










Sunday, 19 August 2018

समन्वय के तत्वाधान में आयोजित अविनाश मिश्र का काव्यपाठ 19.8.2018 को पटना में सम्पन्न

काव्य पाठ के बाद कविता पर बातचीत भी
चित्र साभार- राजेश कमल के फेसबुक वाल से 

पटना, 19 अगस्त 2018: समन्वय के तत्वाधान में पटना के डाकबंगला चैराहा स्थित येलो चिली में युवा कवि तथा आलोचक अविनाश मिश्र का काव्यपाठ आयोजित हुआ. दो सत्रों में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में कवि अविनाश का काव्य पाठ तथा दूसरे सत्र में युवा कवि अंचित से अविनाश मिश्र की बातचीत आयोजित की गई. अविनाश ने अपनी कविता संग्रह 'अज्ञातवास की कविताएं' से कई कविताओं का पाठ किया.  साथ ही कुछ अप्रकाशित कविताएं भी सुनाई. उन्होंने अपनी आत्मकथा 'नए शेखर की जीवनी' से भी कुछ प्रसंगों को सुनाया.

बातचीत सत्र के दौरान युवा कवि अंचित ने उनसे कविता, साहित्य, कविता धर्म और आज के परिदृश्य में कविता पर बात की. श्रोताओं ने भी कवि अविनाश मिश्र से के सवाल पूछे जिसका अविनाश ने जबाब दिया.

इस अवसर पर समन्वय के संयोजक सुशील कुमार के साथ राजकिशोर राजन, शहंशाह आलम, उत्कर्ष, बश्शार हबीबुल्ला, साकेत कुमार, काजी रूमी एकता, सुनील सिंह, सत्यम कुमार झा, रजनीश प्रियदर्शी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे.
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आलेख- सत्यम
ईमेल- satyam.mbt@gmail.com

चित्र साभार- शहंशाअह आलम के वाल से