वैभव कितनी सुन्दर ये सरस
झर गये पुराने सब सूखे पत्र
नव कली कुसुम सतरंग छत्र
चम्पा चमके चम चम चम चम
जूही गमके गम गम गम गम
जल के अंदर भी खिले कमल
मन भौंरा गूँजता हो विकल
सतरंग हृदय हो चहक महक
महका जो बसंती फूल थिरक
सबके मन में उल्लास भरा
उर अति आनंद से भरा परा
जैसे नहले पर दहला हो
सोने पर सुहागा जैसा हो
जैसे मन को अमृत हो मिला
फुदके हो विभोर पीकर प्याला
नाचे मन मधुर झमक झम झम
महके अंगना गम गम गम गम
कितने निर्मल श्रृंगार अजब
हे वासन्ती तू खूब गजब।
......
कवि - राजकुमार भारती
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com
कवि-परिचय: कवि अंगिका और हिन्दी के जाने-माने कवि होने के साथ-साथ निपुण रंगकर्मी और गायक भी हैं. ये आयकर अधिकारी के पद पर भारत सरकार के एक कार्यालय में सेवारत हैं.
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