कल संयोगवश मेरी मुलाकात बिहार के एक जाने-माने पुराने लेखक श्री बाँके बिहारी साव से पटना के एक पेट्रोल पम्प पर हुई. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के आधार पर उनके लेखन के बारे में कुछ जानकारियाँ-
बीस सालों से भी अधिक समय से 'तापमान' मासिक पत्रिका में व्यंग्य लेखन से अपना डंका बजवानेवाले बाँके बिहारी बिहार में हिंदी लेखन में एक सुपरिचित नाम हैं. ये भाषा भारती संवाद के सहायक स्मपादक भी हैं और 'लहक' पत्रिका के भी सम्पादक मंडली से जुड़े हैं और नियमित लेखक हैं. इन्होंने अनेक नाटक भी लिखे हैं और इनहोंने यह बताया कि इनके नाटक "नहीं श्राद्ध अभी नहीं" का 1100 से अधिक बार "मंचन हो चुका है. इनके चर्चित नाटकों में "हे हे बिहारी" और "खुद पे हँस ले यार" अधिक लोकप्रिय हुए हैं. इनके नाटकों का मंचन प्रयास, जागृति, डाक-तार विभाग, पंजाब नेशनल बैंक आदि ने भी किया है.
मैंने स्वयं इन्हें कई साहित्यिक गोष्ठियों में और नाट्य मंचन के महत्वपूर्ण अतिथियों में पाया है. आज भी कालिदास रंगालय में प्रयास के नाट्य महोत्सव में ये मंचासीन वक्ता थे.
ऐसे प्रतिबद्ध और समर्पित व्यंग्य लेखक और नाटककार को अब तक आकाशवाणी या दूरदर्शन वालों ने अब तक कोई अवसर ही नहीं दिया है यह भी अपने आप में एक इतिहास है ऐसा इनका मानना है. मुझे भी यह जानकर आश्चर्य हुआ. मेरे विचार से जब आकाशवाणी और दूरदर्शन नए लेखकों को अवसर देते रहते हैं तो पुराने चर्चित लेखक की दशकों तक अनदेखी कैसे कर सकते हैं?
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प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आइडी- editorbiharidhamaka@yahoo.com
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