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Monday, 29 July 2019

मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह / कवि - अशवनी 'उम्मीद'

मानसून पूरे देश में सक्रिय हो चुका है, और हमारे देश में वर्षा का आगमन केवल ऋतु नही त्यौहार एवं पर्व माना जाता है, निश्चित ही हर्षोल्लास का विषय है परन्तु साथ ही जब कभी देर तक जोरदार बारिश होती है तो मायानगरी मुंबई के एक पुराने (26 जुलाई 2005) ज़ख्म की टीस उभरती है. मुंबई की उसी घटना की स्मृति को केन्द्र में रखकर कवि ने इस रचना का निर्माण किया है.

मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

(मुख्य पेज देखिए- https://bejodindia.blogspot.com/ हर 12 घंटों पर जरूर देखें- FB+ Watch Bejod India)




आओ अतिथि बन के न कि आतताई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

आओ तुम बरसात लेकर 
खुशियों की सौगात लेकर
पर न आना फिर कभी तुम बाढ़ के हालात लेकर 
आओ तो सब करें स्वागत जैसे आई हो बारात 
जाओ तो सब रोये बेटी की बिदाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

मुल्क में बरकत के जैसा
खेत में अमृत के जैसा
खूब बरसो दश्त ओ सहरा में किसी रहमत के जैसा
खूब वीरानों में बरसो तोड़ के तुम कीर्तिमान
पर शहर में बरसना तुम खुशनुमाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

हर्ष,आशा, कष्टमोचक, गर्व और सम्मान बन के
अतिथि तो भगवान जैसा आओ तुम भगवान बन के
पर न आना एक अहंकारी का तुम अभिमान बन के
वध नहीं निर्दोष का करना कसाई की तरह 
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

थे सभी भयभीत और रूक सी गई थी सबकी श्वास
कड़कती बिजली में तुम क्यो कर रहे थे अट्टहास
दृश्य ऐसा कि अदृश्य हो गई थी सारी धरा
ऐसी क्या नाराज़गी बरसे फिदाईं की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

जब समन्दर ने किया इंकार जल लेना तेरा
त्राहि त्राहि मच गई और कांप उठी थी धरा
तैरते थे शव तेरे बरसाए जल की सतह पर
एक दिन में बरसे तुम ग्यारह सौ मिलीमीटर
याद आता है वो दिन सबको बुराई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

सत्य ये भी है कि केवल दोष तेरा ही नहीं
कुछ तो हाई टाईड बेहतर थी व्यवस्था भी नहीं
पर यदि तुम न दिखाते अपना वीभत्स रौद्र रूप
छवि न बनती तुम्हारी ये भयानक और कुरूप
तुमसे विनती है कि अब ऐसा नहीं करना कभी
तुम हो जीवन मृत्यु का ये रूप न धरना कभी
तुम हृदय में सबके रहते हो विशिष्ट स्थान पर
आस्थाएं ऐसी तुमपे जैसी हो भगवान पर
कामना है बस यही तुम पूज्य ही सबके रहो
याद रक्खे सब तुम्हें नेकी भलाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह......
....

कवि- अशवनी "उम्मीद" लखनवी*
कवि का ईमेल - mehrotraashwani@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट : ऊपर के दोनों चित्र 26 जुलाई 2005 की बरसात के है और अंतिम 2019 का है.




4 comments:

  1. Replies
    1. आपको भी धन्यवाद. यदि blogger.com में गूगल पासवर्ड से log in करके यहाँ कमेंट करेंगे तो blogger.com में डाला गया नाम और फोटो यहाँ दिखेगा.

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  2. वाह्ह्ह्ह्ह वाह्ह्ह्ह्ह आजकल की बारिशों से डर लगता है़

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  3. सचमुच! प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद.

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