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Saturday, 3 August 2019

मनु कहिन (7) - जीवन चक्र

जीवन चक्र 

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अरे भाई ये कल की ही तो बात है! कल तक खेलते कूदते, जमाने से बेपरवाह, व्यावहारिकता से कोसों दूर, खुद स्कूल जाते जाते कब कालिज में पहुंच गए पता ही नही चला। थोड़ा दौर बुरा था।यह वो दौर था जब स्कूल कालेजों में पढ़ाई का स्तर गिरना शुरू हुआ था। आगे की राह कितनी कठिन होने वाली थी, अंदाजा न था। खैर! पढाई खत्म होते होते एक बड़े, बहुत ही बड़े कैनवास के हिस्सा बन लिए। 

भाई ! एक अदद सरकारी नौकरी लग गई। समय बड़ी तेजी से पंख लगा कर उड़ रहा था। ये वो समय था जब आपको समय के साथ साथ संतुलन बैठाते हुए अपने आप को आगे बढ़ाना था। पर, शायद परिपक्वता नही आई थी। जो मिल गया उसे ही मंजिल समझ बैठे। आज की राजधानी एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर एक से छूट चुकी थी। जाहिर है, अब तो कल ही मिलेगी। अगले जन्म का इंतजार रहेगा। व्यक्ति हमेशा भविष्य में ही जीता है। भूतकाल पीछा नही छोड़ता है और वर्तमान स्वीकार नही कर पाता है। भाई, प्रारब्ध है ये। करना ही पड़ेगा। चंद्रयान कक्ष में स्थापित हो चुका है।

नौकरी के बाद जैसा कि अक्सर होता है। शादी हो जाती है। कुछ दिनों की मस्ती फिर जिम्मेवारियों का बोझ अब बढ़ना शुरू हो जाता है। दवाब कब तनाव में तब्दील हो जाता है। अब अहसास हो चला था। बच्चों की परवरिश, उनकी पढ़ाई,  समय पंख लगा कर उड़ चलाथा। हम प्रत्येक क्षण आगे बढ़ते जा रहे थे। बहुत कुछ पीछे छोड़ते हुए। समाज परिवार! कुछ तो ऐसे छुटे कि जिनकी अब यादें ही शेष हैं। काश वो दिन लौट कर आ पाते। बचपन में तारों को दिखाकर मां बताया करतीं थी, वो देखो वहां हैं सभी। यह सब लिखते हुए कब कोर भींग गए पता ही नही चला। 

परेशानियों, दवाबों और तनावों के बीच बहुत कुछ पता नही चलता है। बच्चे कब बड़े हो जाते हैं। कब वे अपना रास्ता चुन लेते हैं। बिल्कुल पता नही चलता है। शुरुआत में सब अच्छा लगता है। बदलाव कब और किसे बुरा लगा है भला! पर, देखिए आप फिर से अकेले हो गए। अब तो आपके दोस्त भी नही रहे सब कुछ छूटता जा रहा है। 

आप कब शर्मा जी और शर्मा साहब हो गए। आप तो आप रहे ही नही। आप तो सिर्फ़ किरदार निभाते रहे। किरदार निभाते निभाते कब आप बदल गए खुद आप नही जान पाए। देखिए साहब आप तो एक बेहतरीन अभिनेता हो गए। पर, साहब निर्देशक तो कोई और है। आप अभिनय करते रहते हैं पर, आपको जीवनभर निर्देशक का पता नही चलता है। ढूंढते रहते हैं हम सभी।यही तो जीवन है। यही सच्चाई है मेरे दोस्त। मान लें। दुबारा कुछ नही मिलना है। और जो मिल चुका है, उसे जाना भी नही है। 
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आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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