Pages

Sunday, 3 May 2020

पान सिंह तोमर - एक फिल्म समीक्षा

गुस्से के होते हैं कई-कई रूप

 (मुख्य पेज - bejodindia.in / ब्लॉग में शामिल हों / हर 12  घंटे  पर  देखिए -   FB+  Bejod  / यहाँ कमेन्ट कीजिए



फ़िल्म समीक्षा
फ़िल्म-पान सिंह तोमर
कलाकार-इरफान खान, माही गिल, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी
निर्देशक-तिग्मांशु धूलिया

कहानी चंबल के बीहड़ की है जहाँ का पान सिंह तोमर रहने वाला है।पान सिंह तोमर अपना साक्षात्कार एक पत्रकार को दे रहा है।कहानी फ्लैस बैक में चलती है।पान सैनिक रहता है किंतु वह बहुत तेज धावक है।इसके तेज दौड़ने की चर्चा धीरे धीरे होने लगती है। 1965 ई में जब भारत पाक युद्ध होता है तो उसे युद्ध में शामिल नहीं होने दिया जाता है जिसका पान को बहुत मलाल रहता है । इसका गुस्सा वह खेल के मैदान में निकालता है।रेस में वह इंटरनेशनल चैंपियन बन जाता है।पान का मामा चंबल का डाकू रहता है जिसके बारे में अपने सीनियर को बताता है। सीनियर उसके मामा को डाकू कहता है तो पान सिंह तोमर कहता है कि वो डाकू नहीं  बागी हैं।"बीहड़ में बागी होते हैं ,डाकू तो संसद में होते हैं"।पान सिंह तोमर रिटायर कर जाता है।

उसका चाचा भंवर सिंह पान की फसलें काट लेता है जबकि बीज, खेत व मेहनत पान सिंह तोमर की रहती है।पान इसकी शिकायत थाना में करता है किंतु कोई भी इसकी शिकायत सुनने को तैयार नहीं है। भंवर सिंह का जुल्म बढ़ने लगता है।मजबूरी में पान सिंह तोमर को बागी बनना पड़ता है।आगे क्या होता है इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी चाहिए।

शौक से कोई बागी नाहीं बनत है साहब' जैसे संवाद आपको हमेशा याद रहेगा।इस फ़िल्म के माध्यम से ये दिखाने का प्रयास किया गया है कि प्रशासन पहले लाचार की मदद नहीं करता है  लेकिन वही जब हथियार उठा लेता है तब प्रशासन उसके पीछे पड़ जाता है। जब पान सिंह तोमर इंटरनेशनल चैंपियन बनता है तो कोई नहीं जानता है लेकिन वही जब बागी बन जाता है तो बच्चा बच्चा उसका नाम जान जाता है।उस समय भारत में खेल के दुर्दशा पर भी ध्यान दिलाने का प्रयास किया गया है। इरफान खान का रेस देखते बनता है वहीं उसके संवाद में जो गंभीरता व ठहराव है वह काबिले तारीफ़ है। एक दो दृश्य थोड़ा असहज करते हैं जब वह अपनी पत्नी से मिलता है किंतु अश्लीलता दूर रखते हुए फिल्माया गया है।फ़िल्म का लोकेशन व संवाद कमाल का है।यह फ़िल्म एंटरटेनमेंट के साथ साथ सरकारी तंत्र की खामी को उजागर करती है। पूरी फ़िल्म में आपको कोई भी ऐसा दृश्य नहीं देखने को मिलेगा जिसमें आपको बोरियत महसूस होता हो।इरफान खान की एक्टिंग पूरी फिल्म में बांधे रखती है।

1 अक्टूबर 1980 को पान सिंह तोमर जिंदगी की जंग हार जाता है।यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है।इस कहानी के असली नायक इरफान खान भी 29 अप्रैल 2020 को जिंदगी का असली रेस हमेशा हमेशा के लिए हार जाते हैं।

इस महान कलाकार व बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति को भावभीनी श्रद्धांजलि।
..................
समीक्षक-अमीर हमज़ा
समीक्षक का ईमेल nirnay121@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

अमीर हमज़ा

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.