कितना हँसी है आज चाँद का सफर
जीवन सफर में बहुत से उतार - चढ़ाव आते हैं जिन्हें तय करते समय हमारे मन वाटिका में तरह-तरह के भावनाओं के कुसुम पल्लवित और पुष्पित होते रहते हैं जिन्हें चुन - चुन कर लेखक - लेखिकाओं तथा कवि एवम् कवयित्रियों की मालिन लेखनी पिरोकर वर्ण माला का आकार देती है। कुछ यूँ ही कवयित्री रश्मि सिंह जी की लेखनी ने बहुत ही खूबसूरती से विविध प्रकार के शब्द सुमनो को चुन - चुन कर काव्य माला तैयार की है जिसका नाम है वैविध्य।
रश्मि सिंह जी द्वारा रचित प्रथम काव्य संग्रह संग्रह का वैविध्य नाम वास्तव में उनकी रचनाओं के हिसाब से बहुत ही सटीक है क्योंकि इस संग्रह में मानवीय संवेदनाओं के विभिन्न पहलूओं पर बहुत ही सूक्ष्मता से प्रकाश डाला गया है। कवि मन तो संवेदनशील होता ही है जिसे कवयित्री ने अपने शब्दों में कुछ यूँ कहा है- "पीड़ा से बड़ा ही गहरा नाता है। संवेदनशील मन हमेशा ही प्रभावित हो जाता है। भूख, गरीबी, अनीति छोटी उम्र में ही कहीं गहरे पैठ गये"।
सत्य है तभी तो कवयित्री ने अपनी पहली कविता निर्भया में प्रश्न किया है -
मैं वैदेही बन वन को जाऊँगी
पर क्या तुम राम बनोगे?
तो दूसरी कविता में मुक्ति का मार्ग तलाशती हुई लिखती हैं -
तप में निरत रहे भागीरथ
पुरखों का करने उद्धार
तप से होकर द्रवित सुरसरि
तारने आईं आर्यों के द्वार
प्रबल वेग उन्मत्त हिरणी सी
फिर कहीं जल बिन कल की कल्पना करती हुई अकुलाहट में लिखती हैं -
जल विहीन भूमि पर
कैसा होगा कल?
तो कभी वृक्ष लगाने के लिए आह्वान करती हुई कहती हैं -
आओ हम सब वृक्ष लगाएँ
मेघों से छलके जल को
जड़- जड़ तक पहुँचाएँ
फिर जिंदगी को परिभाषित करते हुए लिखती हैं -
नृत्य की भंगिमाओं में
जीवन का अलंकार है जिंदगी
सरिता की लहरों सा निरंतर
प्रयास है जिंदगी
तत्पश्चात नव दिवस को परिभाषित करते हुए लिखती हैं -
नव दिवस नव बोध है
आत्म शुद्धि का शोध है
कहीं - कहीं तस्वीरों की खूबसूरती को बयां करती हुई कहती हैं -
आँचल के साये में सिमटे हुए
सुकून को समेट लेती है तस्वीरें
अपनी रचना नीयति में लिखती हैं -
परागों से तिरता हुआ एक बीज छूटा
वसुंधरा ने गढ़ दिया रिश्ता अनूठा
तो कहीं कल्पना में चाँद का सफर करती हुई लिखती हैं -
कितना हँसी है आज चाँद का सफर
फिर कभी प्रिय की प्रतीक्षा करती हुई लिखती हैं -
हर आहट पर दिल धड़कता है
आओ या न आओ इंतज़ार रहता है।
बेटी बचाओ अभियान के तहत लिखती हैं -
ये नन्हीं कलियाँ हैं, इन्हें खिलने दो
ये नन्हीं परियाँ हैं, इन्हें पुष्पित पल्लवित होने दो
इतनी वेदनाएँ झेलने के बाद भी कवयित्री विश्वास का दीप जलाते हुए लिखती हैं -
विश्वास विजित एक दीप जलाओ
राम पुनः आयेंगे
इतना ही नहीं वह हिन्द की सेना के साथ खड़ी होकर कहती हैं -
घोप दो खंजर दुश्मन के सीने में
हौसले चाक कर दो
गर भूल से देखे माँ भारती को
इरादे नापाक कर दो
यूँ तो कवयित्री ने हृदय की हर भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है किन्तु अपनी माँ को समर्पित इस संग्रह में विशेष रूप से माँ के बारे में बहुत ही सुन्दर शब्दों से अलंकृत किया है।
यथा -
माँ ओस का स्पर्श, साहस का हिमालय है
इस भौतिकता के जंगल में, माँ धरती पर देवालय है।
माँ सीप है मोती की तरह
संजोती है अपनी प्रीत को
नव कल्पना की तूलिका से रंग भरती
अनगढ़े आलेख को
और फिर अपना मातृधर्म निभाते हुए अपने पुत्र शिखर को आदेश देती हैं -
शिखर नाम है शिखर पर रहो
बड़ों को सदा मान देते रहो
इस प्रकार कवयित्री ने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपना कवि-धर्म बखूबी निभाया है।
रचनाएँ छन्द मुक्त होते हुए भी तुकबन्द हैं इसलिए कविताओं में काव्यात्मक लय है जिसे पढ़ते पाठक को सुखद अनुभूति होगी।
एक सौ सत्ताइस पृष्ठ के इस संग्रह में कुल एक सौ सात कविताएँ हैं जो सरल शब्दों में लिखी गई हैं। संग्रह का कवर पृष्ठ भी संग्रह के नाम के अनुरूप ही है। पन्ने उच्च कोटि के हैं तथा छपाई भी स्पष्ट है इस हिसाब से मूल्य भी 250 /रूपये मात्र ठीक ही है।
इस सुन्दर कृति के लिए मैं कवयित्री रश्मि सिंह को हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ देती हूँ और आशा करती हूँ कि आगे भी उनकी रचनाओं का संग्रह पाठक गण को पढ़ने को मिलता रहेगा ।
वैविध्य - काव्य संग्रह
लेखिका - रश्मि सिंह
प्रकाशक - अयन प्रकाशन
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समीक्षक - किरण सिंह
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbejodindia@yahoo.com
आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर काव्य संग्रह । कैसे उपलब्ध होगी ये किताब
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