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Tuesday 16 June 2020

जिनकी चाहतें हौसले के दायरे में नहीं आती / विजय भटनागर

ग़ज़ल 


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जिनकी चाहतें हौसले के दायरे में नहीं आती
उनकी समझ में जिदगी की भूल भुलैया नही आती।

जमीन पर ठीक से चलने की तरकीबें समझ के बाहर
तारे तोड़ने की हसरत भी दिल से निकल नहीं पाती।

कद बढे लेकिन पैर जमीनपर रखने की आदत रखो
जमी से उठे कदमो के तले कभी भी मंजिल नही आती।

हर एक बंदे में बसती है रूह उस परवरदिगार की
बिना उसकी मेहर के जिंदगी में कोई खुशी नहीं आती।

विजय ने हर बंदे मे उस खुदा का नूर  हर पल देखा है
बिना बंदो की दुआ के जिंदगी में बरक्कत नहीं आती।
...

वि= विजय भटनागर 
परिचय- श्री विजय भटनागर एक सेवानिवृत वैज्ञानिक हैं और नवी मुम्बई में अत्यंत सक्रिय कवि हैं जो काव्योदय नामक संस्था के मुख्य आधार-स्तम्भ हैं.
वर्तमान निवास - नवी मुम्बई
ईमेल आईडी - vijatkbhatnagar@gmail.com
मोबाइल-   9224464712
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