श्रीमती बिमला दत्त का अपनी कला यात्रा पर आत्मकथ्य
शादी के बाद मेरी कला कर्तव्यों के सामने सोई रही. उन दिनों मेरी ससुराल जैसे सम्भ्रांत, कुलीन परिवार में पर्दा प्रथा बहुत ज्यादा थी. कुछ सालों के बाद जब बच्चे कुछ बड़े हो गए तो मेरे अंदर का कलाकार बाहर आने को छटपटाने लगा. मेरी लगन और प्रतिभा को देखते हुए मेरे पति स्व. श्री प्रताप नारायण दत्त ने मुझे इन लोकचित्रों को कागज पर उकेरने के लिए प्रोत्साहित किया.
मेरी कला यात्रा राँटी (ग्राम) से होते हुए देश के विभिन्न प्रदेशों से गुजरते हुए नेपाल एवं जापान तक जा पहुँची. जापान के मिथिला म्यूजियम में दो बार 18.9.89 से 25.12.89 तक और 01.4.96 से 30.9.96 तक रही. अपने जापान प्रवास के दौरान मेरा अनुभव यह रहा कि जितना सम्मान एवं पारिश्रमिक ये विदेशी अपने कलाकारों को देते हैं उसका आधा भी हम कलाकारों को मिलता तो हम भी रोजी रोटी की समस्या से ऊपर उठ अपनी कला को नित नया आयाम दे पाते.
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सामग्री साभार - चंदना दत्त, ग्राम- राँटी (मधुबनी)
ब्लॉग के मेन पेज पर जाना कदापि न भूलें (लिंक) - biharidhamaka.org
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