Friday, 22 November 2019

चांद का मजहब / कवि - वेद प्रकाश तिवारी

कविता 

(मुख्य पेज पर जाइये- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटों पर जरूर देखें- FB+ Today Bejod India)


रात्रि के चौथे पहर
किसी मंदिर से आती
घंटों की ध्वनि के साथ
मंत्रोचार
साथ ही किसी मस्जिद से
अजान की आवाज
गूंजते रहते हैं थोडी देर
मेरे कानों में
मैं दोनों ध्वनियों के मध्य
कर लेता हूँ स्थापित
अपने आप को
भर लेता हूँ भरपूर ऊर्जा
अपने प्राणों में
और निकल पड़ता हूँ
सुबह की यात्रा पर
रास्ते में मिलता है गुलाब
जिसकी महक करती है मुझ पर
आनंद की बरसात
मेरे साथ चलती हैं हवाएं
जो कराती हैं
ताजगी का एहसास
सूर्य की किरणें
बनाती हैं मुझे उर्जावान
पर आश्चर्य
उनमें नहीं है भेद
छोटे- बड़े का
नहीं है
अपने होने का अहंकार
जबकि आदमी का अभिमान
उसका कोरा ज्ञान
बाँट रहा है
गीता और कुरान
मैं होकर बेचैन
पूछता हूँ अक्सर चाँद से--
ऐ चाँद
कभी ईद पे तेरा दीदार
कभी कड़वा चौथ पे
तेरा इंतज़ार
अब तू ही बता
तेरा मजहब क्या है ?
.....
कवि-  वेद प्रकाश तिवारी
कवि का ईमेल - vedprakasht13@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Thursday, 14 November 2019

"बीमार दिल्ली" और "सत्ता" / वेद प्रकाश तिवारी की कविताएँ

आज के समय में जब देश के महानगर जानलेवा वायु-प्रदूषण के शिकार हैं और जब लोग बलात्कार जैसी घटनाओं पर बयान देते समय भी राजनीतिक हितों के कारणवश हिचकते हैं, श्री वेद प्रकाश तिवारी दो टूक शब्दों में कही बातों पर. गौर कीजिए-

1. बीमार दिल्ली

(मुख्य पेज पर जाइये- bejodindia.blogspot.com / हर 12 घंटों पर जरूर देखें- FB+ Today Bejod India)




विकास की अंधी दौड़ में 
शामिल हैं वे लोग
जिनकी महत्वाकांक्षा
नहीं करती गुरेज
प्रकृति के दोहन से
जिन्होंने दिया है दिल्ली को 
ऐसा रोग
जिसके कहर से 
बीमार दिल्ली ढूढ़ रही है 
अपना वास्तविक चेहरा
जो ढका हुआ है धुंध से
ये धुंध चेतावनी है संभलने की
यदि करते रहे नजरअंदाज
तो रखना याद
प्रकृति का ये कहर
नहीं बख्शेगा कोई शहर। 


 2. सत्ता

मर्यादा, आदर्श, कानून, संविधान की
परिधि के बीचो-बीच 
कुछ दरिंदों का शिकार 
हो जाती हैं बालाएं 
जो चीख- चीख कर 
तोड़ देती हैं दम
ऐसे में होता है 
समाज आंदोलित
माँगता है न्याय
उसमें कुछ विचारधाराएँ 
नहीं देती उनका साथ
उनका बोलना होता है निर्भर
हवाओं के रुख पर
वे निर्माण करती हैं
ऐसा समाज
जो हो मूल्यविहीन
और उन्हें पहुंचा सके
सत्ता के गलियारों तक
इसलिए वे ऐसे कृत्यों पर 
कर लेते हैं अपनी 
जुबान बंद
भले ही सामाजिक मर्यादा
होती रहे भंग। 
.....

कवि - वेदप्रकाश तिवारी
कवि का ईमेल - vedprakasht13@gmail.com
प्रतिकिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com