यह हर्ष का विषय है कि बिहार के रंगकर्मी हर वर्ष एनएसडी में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रहे हैं, लेकिन उनको अपनी विचारयुक्त, विरोध-प्रतिरोध की संस्कृति को आधार बनाकर कार्य करने की प्रवृत्ति अपनाने की जरूरत है, तभी सही मायने में बिहार की क्षेत्रीय विशेषताएं इसे राष्ट्रीय महत्व का बनाएगी। अन्यथा जन संचार माध्यम रंगमंच भी दूसरे संवेदनहीन हो चुके पेशे की तरह विकलांग राष्ट्रीयता की बैशाखी पर जीने-खाने की कवायत भर होकर रह जाएगी।
हिंदुस्तान के प्रसिद्ध नाट्य-संस्थान राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में इस वर्ष बिहार से मुज़फ़्फ़रपुर की शिल्पा भारती और बक्सर के विकास कुमार गुप्ता का चयन किया गया है। ज्ञात हो कि एनएसडी का संबंध बिहार से इसके प्रथम बैच में प्रशिक्षित प्यारे मोहन सहाय से शुरू हुआ। वैसे बिहार रंगमंच की विरासत विरोध-प्रतिरोध की संस्कृति की रही है और इसके लिये ये प्रदेश पूरे देश मे विख्यात है। एक तरफ जहां ऐसे विरासत वाले रंगकर्मीयों में जनता के पक्ष में खड़े रहने वाली बात पहले से होती है, वहीं बेशक नाट्य विद्यालय ने कलात्मकता के स्तर पर बिहार के कई रंगकर्मियों को समृद्ध किया है। सतीश आनंद,संजय उपाध्याय,संजय मिश्रा,सुमन कुमार,संजय झा,आसिफ अली हैदर, विनीत कुमार,अजय कुमार,विजय कुमार,असीमा भट्ट, उत्पल झा, पंकज त्रिपाठी, रंजन झा,पुंज प्रकाश, रणधीर कुमार, प्रवीण गुंजन,मानवेन्द्र त्रिपाठी,राणा कमल,श्याम कुमार सहनी,सुमन पटेल,राकेश कुमार, सिकंदर, हरिशंकर रवि आदि ने अपने रंगकर्म से बिहार का नाम रौशन किया है। वहीं शशि भूषण वर्मा और विद्या भूषण द्विवेदी के एनएसडी में पढ़ने के दौरान विद्यालय की लापरवाही की वजह से मृत्यु भी हमारे सीने में न सिर्फ दफन है, बल्कि कई अनसुलझे सवाल भी छोड़ गया है।
बहरहाल, इस वर्ष बिहार से शिल्पा भारती एवं विकास कुमार गुप्ता का चयन हुआ। शिल्पा मुजफ्फरपुर के मुस्तफ़ागंज गांव की रहनेवाली हैं।2010 से इन्होंने थियेटर शुरू किया और 2013 में पटना आ गई। पटना रंगमंच में लगातार काम कर रही शिल्पा ने बहुत सारे नाटक किए जिसमें 'गुंडा' और 'अक्कड़माशी' का प्रदर्शन इस बार भारत रंग महोत्सव में हुआ। अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देती है जिन्होंने हमेशा साथ दिया। इन्होंने रणधीर कुमार, संजय उपाध्याय, तनवीर अख्तर, विजयेन्द्र टॉक, जहांगीर खान सहित कई निर्देशकों के साथ प्रशिक्षणरत रहते हुये कार्य किया है और अक्करमाशी, नटमेठिया, गुंडा, जल डमरू बाजे, पकवाघर, घासीराम कोतवाल जैसी प्रस्तुति में कार्य भी किया है।
विकास कुमार गुप्ता बक्सर जिले के गायघाट ब्रम्हपुर के मूल निवासी हैं और दिल्ली में रहकर लगातार रंगकर्म कर रहे हैं। एक छोटे से ग्रामीण परिवेश से आने वाले इस रंगकर्मी ने एम. के. रैना, बापी बोस, डॉली आलुवालिया, रॉबिन दास, अरुण मलिक, हेमा सिंह, जे. पी. सिंह, प्रेम मटियानी जैसे देश के नामचीन निर्देशकों के साथ प्रशिक्षणरत रहे हैं और कबीरा खड़ा बाजार में, सुखिया मर गया भूख से, एक कंठ विषपायी, गुंडा, किस्सा मौजपुर का, खूबसूरत बला, मोटेराम का सत्याग्रह आदि नाटकों में अभिनय भी किया है।
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