आज “आई लव यू”.....कल “आई हेट यू”
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सच्चे प्यार का मतलब तो पता नहीं बस वैलेंटाइन मनाने की होड़ करते देखे जाते है
आज की यंग जनरेशन को 14 फरवरी का, जिस बेसब्री से इंतज़ार रहता है, उतनी बेताबी शायद किसी और दिन के लिए नहीं होती। प्रेम का उत्सव, प्यार का त्योहार वैलेंटाइन डे क्या वाक़ई सच्चे प्यार के सेलिब्रेशन का दिन है? आज के दौर में जब लड़के-लड़कियां कपड़ों की तरह गर्लफ्रेंड और ब्वॉयफ्रेंड बदलते हैं। इस साल जिसके साथ वैलेंटाइन डे मना रहे हैं, अगले साल तक उनका ये वैलेंटाइन न जाने कितनी बार बदल चुका होता है, जो रिश्ता जोड़ने से पहले दिल और इमोशन की बजाय सामने वाले की पॉकेट और बैंक अकाउंट खंगालते हैं। क्या ऐसे लोगों से सच्चे प्यार की उम्मीद की जा सकती हैं, क्या इन्हें प्यार के सही मायने भी पता होते हैं?
यकीनन इनके लिए तो तीन अक्षरों ‘आई लव यू’ से शुरू हुआ प्यार तीन अल्फाजों ‘आई हेट यू’ पर खत्म भी हो जाता है। ये ठीक है कि लोकतांत्रिक देश में हर किसी को अपनी मर्ज़ी से जीने का, पर्व/त्योहार मनाने का हक़ है, मगर क्या प्यार के नाम पर गुमराह होती युवा पीढ़ी को रोका नहीं जाना चाहिए? कॉलेज तो छोड़िए अब तो स्कूली बच्चे भी वैलेंटाइन डे मनाने लगे हैं. हम और आप जिस उम्र में किताबें और खेल-कूद की दुनिया से इतर कुछ सोच ही नहीं पातें थे, उसी उम्र में आज के बच्चे इश्क की बातें कर रहे हैं, पढ़ाई और करियर से ध्यान भटकर गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड को मनाने के तरी़के ढूंढ़ने में व्यस्त है, क्या ये चिंता का विषय नहीं?
प्यार तो दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत एहसास होता है, जो दो दिलों में होता है और ये भी जरूरी नहीं कि ये प्यार सिर्फ पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका का हो। प्यार तो हर रूप में पावन होता है फिर चाहे वो भाई-बहन का हो, मां-बेटे का या पिता-बेटी का। यदि कोई वाक़ई प्रेम का उत्सव मनाना चाहे, तो उसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, लेकिन पश्चिम के इस त्योहार के नाम पर जो सेलिब्रेशन होता है क्या प्यार की परिभाषा इतनी ही सीमित है।
लड़के-लड़कियों को मिलना एक-दूसरे को गले लगाना, किस करना, डेट पर जाना, गिफ्ट का लेन-देन और थोड़ा ज़्यादा मॉर्डन हो गए, तो एक क़दम आगे बढ़ते हुए हमबिस्तर हो जाना। इस मॉर्डन लव में प्यार का कोई नामोंनिशान नहीं होता, कोई कोमल भावना नहीं होती, कोई एहसास नहीं होता है। यदि कुछ होता है तो बस आकर्षण, वासना और टाइम पास के लिए एक साथी। हां, सौ में से एक जोड़ा भले ही सच्चा प्रेमी हो सकता है। वैसे भी क्या प्यार के इज़हार के लिए कोई एक दिन मुकर्र किया जा सकता है। प्यार तो कभी भी किसी से भी हो सकता है, वो दिन, समय, तारीख़ नहीं देखता, तो उसके इज़हार के नाम पर इस दिखावे की क्या ज़रूरत?
हमारे देश में जहां राधा-कृष्ण पवित्र प्रेम का प्रतीक माने जाते है, मीरा के निःस्वार्थ प्रेम की मिसाल दी जाती है, वहां प्यार के इज़हार के किसी विशेष दिन या ता. की क्या ज़रूरत? जिस पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण कर हम इस त्योहार को इतने जोश से मनाते हैं, इसे प्यार का पर्व कहते हैं, क्या कभी सोचा आपने कि यदि वहां इतना ही प्यार होता, तो क्यों कोई पति/पत्नी एक ही हमसफ़र के साथ ज़िंदगी भर नहीं रह पाते, क्यों एक बच्चे के कई माता/पिता होते हैं? कई बार तो बच्चे को ये भी पता नहीं चल पाता कि उसका असली पिता कौन है?
हमें हमारी संस्कृति नहीं समझ आती क्यो की उस में प्यार के मायने त्याग , समर्पण , अटूट विश्वास , आस्था , जीवन पर्यन्त का रिश्ता बताया गया ।
माना कि ज़माना बदल गया है अब ख़ामोश रहकर स़िर्फ आंखों के इशारों से इश्क का इज़हार नहीं किया जाता, लेकिन इसका ये मतलब भी तो नहीं कि खुलेआम का प्यार का दिखावा किया जाए। युवाओं के लिए इस ख़ास दिन से किसी का फ़ायदा हो न हो, मगर बाज़ार को फायदा ज़रूरत होता है, जो उनके इस कथित प्रेम को जी भरकर भुनाता है। कार्ड और गिफ्ट्स की भरमार के साथ ही अब तो रेस्टोरेंट, थिएटर आदि में उस दिन स्पेशल ऑफर भी दिया जाता है। कई कंपनियां भी युवाओं को आकर्षित करने के लिए वैलेंटाइन डे के लिए अपने प्रोडक्ट के साथ स्पेशल ऑफर देती है और लोग इस छूट का फ़ायदा उठाते हुए जुट जाते हैं अपने प्रेमी/प्रेमिका को ख़ुश करने में।
यह एक दिन मनाने उपहार देने का दिन नहीं होकर एक वचन दे की हम एक दूसरे के सुख दुख में साथ निभायेगे , एक दूसरे के परिवार की इज़्ज़त करेंगे , शादी
के पवित्र बंधन में बंध कर आजीवन साथ निभायेंगे ।
वैसे बाज़ारवाद के इस दौर में जब रिश्ते-नाते सबके मायने ही बदल गए हैं, तो भला प्यार कैसे न बदले ?
अरे प्यार या भावनाऐ क्या बदलने की चीज़ है।
आधुनिकता के नाम पर जो न हो वह कम है ....
वैलेंटाइन मनाये परन्तु इस दिन दिमाग ठिकाने पर रखने का होता है। दूसरों को देखकर होश न खो दें, रिलेशनशिप को पकने के लिए थोड़ा समय दें। यकीन कीजिए आप वेलेंटाइन डे का बुखार उतरने के बाद दूसरे दिन ज्यादा खुश हो उठेंगे क्योंकि आपने संयम रखा और भावना के बहाव पर लगाम कसे रखी जो जीवन में बहुत जरुरी है।
कहावत है ...जोश से नही होश से रिश्तो की परवरिश करे।
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लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय
लेखिका का ईमेल - lalkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
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