कविता
तुमने दिल ऐसे माँगा था ज्यों पीतल का छल्ला
हम क्या जानें हमरी किस्मत में लिक्खा है नल्ला
तुम तो कविताई में पागल नित नित नया पुछल्ला
अजी पिया तुम तो कलकतिया झाड़ गए फिर पल्ला
सुन सकते तो सुन लो बालम हमरे दिल का हल्ला
तुम बिन बेरथ आज लगे है हिय का सिम्मुलतल्ला
जब से भई कवियों की संगत सुख-सपना सब झल्ला
काव्यसम्पदा के तुम स्वामी , नहीं मनुज तुम भल्ला
भावों से ही भरा हृदय है , घर में नाहीं गल्ला
हमरी सुधि अब ले लो बालम कविवर विकट निठल्ला
पिय अनिमेष सुधर जा अब भी छोड़ अदब का बल्ला।
....
कवि - भागवत अनिमेष
ईमेल - bhagwatsharanjha@gmail.com
No comments:
Post a Comment
Note: only a member of this blog may post a comment.