चांद को मै जब तुम्हारा हमशकल लिखने लगा
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चांद को मै जब तुम्हारा हमशकल लिखने लगा
बस उसी दिन तय हुआ कि मै ग़ज़ल लिखने लगा.
(अशवनी 'उम्मीद')
उसको भूलूं आसानी से ये तो मुशकिल है लेकिन
उसने मुझको याद रखा हो ऐसा होना मुश्किल है
तसले के पानी में उसका अक्स दिखा होगा तुमको
चांद मिरे आंगन उतरा हो ऐसा होना मुश्किल है
(अशवनी 'उम्मीद')
घर जलाने की वो जब जब साजिशें करने लगा
मेरा मालिक आसमां से बारिशें करने लगा
ये बुलंदी भी उसी का रास्ता तकती रही
जो बुलंदी पहुंचने की कोशिशे करता रहा
(अशवनी 'उम्मीद')
नज़ाकत और नफासत के शहर लखनऊ में दिनांक 13.07.2019 को चेतना साहित्य संस्था जो कि 46 वर्ष पुरानी संस्था है, ने एक कवि गोष्ठी का आयोजन किया जिसमें अशवनी 'उम्मीद' को मुख्य अतिथि बनाया गया और उनका सम्मान भी किया गया। गोष्ठी विभिन्न विधाओं के प्रत्येक रस से समृद्ध रहीं।
वरिष्ठ रचनाकारएवं गोष्ठी के कर्ता धर्ता सरस कपूर एवं अनेक पुरस्कार प्राप्त कर चुके वरिष्ठ शायर सरवर ने शाल ओढ़ाकर एवं फूलों की माला पहनाकर सम्मानित किया। सरवर लखनवी ने अशवनी 'उम्मीद' को अपना ग़ज़ल संग्रह *"दर्द की परछाईयां"* भी उपहार स्वरूप प्रदान किया । सम्मानित शायर ने बताया कि यह उनके लिए एक अविस्मरणीय अवसर था।
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Very nice report
ReplyDeleteShaandaar
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