Saturday, 25 April 2020

जरा चैन मिल जाए / अन्नपूर्णा श्रीवास्तव की कविताएँ

जरा चैन मिल जाए


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 खुशियाँ हुई हैं गुमशुदा, कोई ढूँढ कर लाए,
 जब दर्द का हो इन्तहां दिल कैसे मुस्काए। 

खामोश लब पै बात कोई, आकर ठहर गई
 गैरों से दिल का दर्द कोई कैसे बतलाए। 

नश्तरों से था जो घायल, भर गया वह जख्म,
अल्फ़ाज से जख्मी हुआ, दिल कैसे भर पाए।

जानना चाहो जो दिल के टूटने का हाल,
 दरके हुए शीशे से कह दो, हाल समझाए!
 सैकड़ों टुकड़े हुआ जो, आइना-ए-दिल,
 मत समेटो यार कोई किर्च चुभ जाए!
 ऐ अज़ल सोने दो मुझको, आगोश में अपनी,
 थक गयी है 'अनु'  बहुत, जरा चैन मिल जाए!
.....



     वक्त
           
 यह दुनिया अजब - अनोखी है
 जिस शख्स को चलना आता है
मौसम के बदलते तेवर पर
उन्हें खुद को बदलना आता है।

यहाँ कदम-कदम पर छलनेवाले
बहुरूपिये, बेगैरत हैं
 उसपर न उनकी दाल गले
जिन्हें बच के निकलना आता है!

जिन्हें छीन के लेना आता है
 वे ही पाते हैं हक अपना
हक माँग के जो लेना चाहे
हक छोड़ के चलना आता है!

जो संभल- संभल के चलते हैं
मिलते न कभी वे गर्दिश में
 तारीफ मगर उस इंसान की
 जिन्हें गिर के संभलना आता है।

यह वक्त बड़ा बलशाली है
कब किसको बनाए- मिटाये यह
 पा सकते वे ही मंजिल को
जिन्हें वक्त पर चलना आता है.
.......

कवयित्री - डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
कवयित्री का ईमेल -  annpurnashrivastava1@gmail.com
कवयित्री का पता - पटना
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com


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