हमारी भावनाएँ हमारे शब्दों तक सीमित नहीं हैं,
शब्द तो बस मुखड़े है, पूरे गीत नहीं हैं ।
झांको इन आँखों में, समझो आंसुओं की शक्ति को
मेरी ख़ामोशी में पढ़ लो, मेरी पूरी अभिव्यक्ति को।
(1)
सुनता हूँ तुम्हें
तुमसे ज़्यादा
तुम्हारी खामोशियों में
क़्योकि,
ख़ामोशियों में वो भी सुन लेता हूँ
जो तुम शब्दों में
व्यक्त नहीं कर पाते हो।
(2)
सुमझता हूँ तुम्हें
तुमसे ज़्यादा
तुम्हारी खामोशियों में
क़्योकि,
ख़ामोशियों में वो सब समझ लेता हूँ
जो तुम समझा नहीं पाते
और मैं समझना चाहता हूँ ।
(3)
बोलती हैं
मुझसे अधिक
मेरी ख़ामोशी
क्योंकि,
ख़ामोशी में होती है
न शब्द की सीमाएँ
और न शिष्टाचार के बंधन
गीत
*मैं बुलाता हूँ रहूँगा *
मैं बुलाता ही रहूँगा
पास लेकिन तुम न आना
दूर से ही आगमन का
बस मुझे संकेत देना
मैं बुलाता..........
हर प्रतीक्षा के क्षणों में
स्मृतियाँ बन कर समाना
अश्रु बन कर समाना।
वेदना के गीत गाना
मैं बुलाता........
रहे कल्पना में छवि तुम्हारी
स्वप्न की दुनिया में आना
आये बिन न रह सको तो
बन चौदहवीं का चाँद आना
मैं बुलाता..............
एक अधूरी सी किरण
मन के दीपक जगमगाना
ग़र मिल गये पूरे मुझे तुम
और क्या रहेगा मुझको पाना
मैं बुलाता...........
....
कवि- शिवम
ईमेल- shivam.kumar@sbimf.com
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