कविता
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(भारत की महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना झंडा गाड़ा है. अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला हो, प्रथम महिला आईपीएस किरण बेदी हों, खेल में पीटी उषा हों या व्यवसाय में नैनालाल किदवई, चाहे राजनीति में इंदिरा हों या सुषमा,- जहाँ रहीं अपना झंडा गाड़ा. आइये सहित्यकर्म में बरसों से सक्रिय और अनेक संघर्षों को झेलती हुई अपनी एक पहचान कायम करनेवाली लता प्रासर की इस विषय पर एक रचना देखते हैं। -संपादक)
समय बदला है
नज़रिया बदला
अपने इरादों को बदलना
अपने बारे में गहराई से सोचना
बिटिया मां की परछाई नहीं
मां परछाई बनकर साथ है
धूप छांव में
शहर या गांव में
जुमलों के दांव में
समय बिन गंवाए
अपनी पहचान
अपना ईमान
बचाए रखना
और
जिंदगी का इम्तिहान
सफल बनाए रखना
उंगली यूं ही
एक-दूसरे की
थामें रहें
या
स्त्रीत्व को बचाए रहें
सफ़र केवल सफ़र नहीं है
जिंदगी का उर्ध्वोत्तर बढ़ना है
सिमोन द बोउआ
इसी की लड़ाइयां लड़ती रहीं
इंदिरा को इसीलिए
ऊपर का रास्ता दिखाया गया
किरण बेदी हाशिए पर गई थी
सोचना
अपने लिए
कौन कहां
जगह बना पाया
सितारों के बीच
कहीं कोई जगह तलाशना ही
जिंदगी का सफ़र है
विचारों से
डिगना नहीं
डरना नहीं
डगमगाना नहीं
विचार ही सीढ़ी है
मानव से मानवता की ओर
जाने का
स्त्री से मनुष्यता तक जाने की
व्यवहार से कर्म तक जाने की
अपनों से अपनेपन तक जाने की
इसलिए हमेशा
विचारों को
बचाए रखना
यही
भूत भविष्य वर्तमान की
पूंजी है
जाओ
और बचा लो
इस सच को
जाओ
जाओ
मिट्टी को याद रखना.
...
कवयित्री - लता प्रासर
कवयित्री का ईमेल आईडी- kumarilataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
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