Thursday 31 May 2018

युवा प्रतिभा-3 / कुन्दन आनंद की कविताएँ

दो कविताएँ  - कुन्दन आनन्द 



कविता-1


क्या करे हम भला आप ही बोलिए 
चुप न रहिए जी अपनी जुबाँ खोलिए 

आप ने कल कहा तू न चल भीड़ में 
आप ही आज क्यों भीड़ में हो लिए? 

उनको अपनो में भी जब न अपना मिला
बंद कमरों में ही खूब वो रो लिए

धर्म हमने निभाया है मजदूर सा 
पीठ पर जो पड़ा सबको हम ढ़ो लिए 

हमको काँटों ने पाला पिता की तरह 
मेरे काँटों को फूलों से मत तौलिए.


कविता-2

जिस दिन से श्मशान से होकर आया है 
समझ गया है दुनिया बस मोह-माया है 

वो मेरी भी और तेरी भी है अपनी
मौत के लिए कोई नहीं पराया है 

दाने  दाने की कीमत उससे पूछो
कई रात बस भूख को जिसने खाया है 

खुशनसीबों में लिखो तुम हमको भी 
हमने भी तो माता पिता को पाया है 

इस शहर में भी खुद में ज़िंदा हूूँ क्योंकि 
गाँव की मिट्टी ने मुझे बनाया है.
.....
कवि- कुन्दन आनन्द
कवि का ईमेल- anand22021994@gmail.com
कवि-परिचय:  कुन्दन आनन्द अत्यंत सक्रिय युवा साहित्यकर्मी हैं और पटना में आयोजित अधिकांश कवि-गोष्ठियों में इन्हें आमंत्रित किया जाता है और ये भाग भी लेते हैं. पेशे से शिक्षक कुन्दन बिलकुल सादगी को पसंद करते हैं विचारों और व्यवहार में भी. इनकी कविताओं में एक वैराग्य का भाव झलकता है और समाज के विरोधाभास पर भी इनकी पैनी नजर है. जीवन अगर एक नाटक है तो ये उसमें  मात्र अभिनेता बनने की बजाय एक द्रष्टा की भाँति उसे देखकर उसके प्रति एक दृष्टिकोण विकसित करने में अधिक रूचि रखते हैं. अपने संस्कार, त्याग की भावना और आस्था को लिए यह कवि देश में एक सकारत्मक विराट परिवर्तन की आकांक्षा रखता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि भविष्य में ये एक यशस्वी प्राढ़ कवि बन पाएंगे. 







Monday 28 May 2018

राष्ट्रीय कवि संगम बिहार पटना की तृतीय गोष्ठी सह कवि सम्मेलन का आयोजन 27.5.2018 को सम्पन्न

राष्ट्रीय कवि संगम पटना का तृतीय गोष्ठी- सह- कवि सम्मेलन



"राष्ट्रीय कवि संगम बिहार" पटना जिला इकाई के अंतर्गत तृतीय गोष्ठी सह कवि सम्मेलन का आयोजन दिनांक 27 मई 2018 दिन रविवार को शहर के 'वीर कुंवर सिंह आजादी पार्क' में संपन्न हुआ| गोष्ठी का आयोजन पटना जिला इकाई के संयोजक डॉ. रामनाथ शोधार्थी एवं उप संयोजक केशव कौशिक द्वारा किया गया| गोष्ठी में प्रदेश संयोजक अविनाश कुमार पांडे की उपस्थिति रही तथा शहर के और भी कई बड़े साहित्यकार थे| इनमें प्रमुख समीर परिमल, सिद्धेश्वर प्रसाद, सुनील कुमार  ,योगेंद्र उपाध्याय की उपस्थिति रही| गोष्ठी में कार्यकारिणी गठन संबंधित चर्चा हुई तथा जल्द पटना जिला इकाई का कार्यक्रम कराने का निर्णय लिया गया| कार्यक्रम में निम्नलिखित युवा साहित्यकार उपस्थित थे, अमित अकेला ,सनी शर्मा, गुंजन सिंह, सुमन सौरभ, मयंक मिश्रा, रितेश गौरव, मनीष कुमार,अक्स समस्तीपुरी, आनंद प्रवीण, कुश कुमार, विकास राज, रविंद्र सिंह त्यागी, कुंदन आनंद, शिवांशु सिंह और सुबोध सिन्हा |
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आलेख एवं चित्र- अविनाश पाण्डे

Thursday 17 May 2018

युवा प्रतिभा-2 / नेहा नारायण सिंह की कविताएँ

अंत की गुहार
कवयित्री - नेहा नारायाण सिंह




जब खिलती हँसी  कराहती  है 
जब कोई कली कुचली जाती है 
तब नारी-धर्म युद्ध के लिए पुकारता है
जब बेशर्म जमाना राजनीति करता है
रोको न खुद को, रूको न तुम 
द्वापरयुग नहीं जो कृष्ण आयेंगे
अग्नि सी तू  बहुत जल चुकी 
इस आग में अब सबको जलाना है

तब लड़ाई लाज की थी 
आज लड़ाई भी लाज की है 
तब  द्रोपदी खून से नहाई थी 
जब  पांडव करूक्षेत्र में थे 
समय चक्र की वेदी चढ़ चुका है
अब चंडी बन कर काल को समझाना है 

कोई नहीं इस भारत देश में 
आधे जन मुर्दा बन बैठे हैं
इतने पात्र  जीते हैं हम 
एक पात्र अब और जीना है 
हाय-हाय कर बहुत देख लिया 
अब काली बन मुर्दो से श्रृंगार करना है
नजर उठे जो बुरी उन आँखों को नोच लेना है

छूती उन भुजाओं को उखाड़ फेंकना है
शूल देना है उस तन को जो तुझ पर भारी पड़े
आधे जन है हम 
शैतानों की बर्बादी का मंजर ला सकते है
कब तक बर्बाद होते देखते रहे
खुद को अपनों के दर्पण में देख रोते रहे
अति अंत की गुहार लगा रहा है 
आंदोलन एक अब हम करते हैं
क्रान्तिवीर बन अब युद्ध लड़ते है 
चण्डी काली का रूप अब हम धरते हैं

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वो रात कैसी थी ? 
कवयित्री - नेहा नारायाण सिंह

वो रात कैसी थी ?  वो रात कैसी थी ?
जब रात के नौ बजे थे, सड़क  सूनी पड़ी थी
दूर से,  अनजाने शोर की खामोशी
बड़ी तेजी से,  उसकी तरफ़ बढ़ी आ रही थी
जब रात के नौ बजे थे, सड़क सूनी पड़ी थी 

उसकी कहानी ने इनसानियत को शर्मिंदा कर दिया
 हर दिल को रुला दिया बेतहाशा  इस सर्दी में
सड़क पर जाने के लिए हमे मजबूर कर दिया
कहा - अब और नहीं
आँखो पर पड़ी पट्टी को हटाओ
कानो के पर्दे खोल जाओ

जाओ मेरी चीखें तुम्हें सोने नहीं देंगी
मेरी कहानी तुम्हें  चुप होने नहीं देगीं
मेरी मैयत पर अब दीये मत जलाओ
जाओ जाओ मुझे इन्साफ़ दिलाओ
वो रात जैसी  भी थी वो रात फिर ना आए
फिर कोइ निर्भया भय की कहानी न लिख जाए 

वो रात कैसी थी?  वो रात कैसी थी?
मेरे दर्द पर  आसमाँ रो गया
मेरी  आह से धरती फट गई
हिन्द पर लगी कालिख की रात थी  वो 
क़यामत की रात थी वो 
मेरे दर्द की रात थी वो 
तेरे शर्म की रात थी वो 
वो रात  एेसी  थी, वो रात  एेसी  थी.
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कवयित्री- नेहा नारायण सिंह
ईमेल- nehasrlnmi2017@gmail.com
कवि परिचय- नेहा नारायण सिंह एक युवा किन्तु अत्यंत सक्रिय कवयित्री हैं और लेख्य मंजुषा सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हैं. इन्होंने एल.एन.मिश्रा इंस्टीच्यूट, पटना से एम.सी.ए. की पढ़ाई पूरी की है और एक निजी कम्पनी में कार्यरत हैं.