Friday 22 November 2019

चांद का मजहब / कवि - वेद प्रकाश तिवारी

कविता 

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रात्रि के चौथे पहर
किसी मंदिर से आती
घंटों की ध्वनि के साथ
मंत्रोचार
साथ ही किसी मस्जिद से
अजान की आवाज
गूंजते रहते हैं थोडी देर
मेरे कानों में
मैं दोनों ध्वनियों के मध्य
कर लेता हूँ स्थापित
अपने आप को
भर लेता हूँ भरपूर ऊर्जा
अपने प्राणों में
और निकल पड़ता हूँ
सुबह की यात्रा पर
रास्ते में मिलता है गुलाब
जिसकी महक करती है मुझ पर
आनंद की बरसात
मेरे साथ चलती हैं हवाएं
जो कराती हैं
ताजगी का एहसास
सूर्य की किरणें
बनाती हैं मुझे उर्जावान
पर आश्चर्य
उनमें नहीं है भेद
छोटे- बड़े का
नहीं है
अपने होने का अहंकार
जबकि आदमी का अभिमान
उसका कोरा ज्ञान
बाँट रहा है
गीता और कुरान
मैं होकर बेचैन
पूछता हूँ अक्सर चाँद से--
ऐ चाँद
कभी ईद पे तेरा दीदार
कभी कड़वा चौथ पे
तेरा इंतज़ार
अब तू ही बता
तेरा मजहब क्या है ?
.....
कवि-  वेद प्रकाश तिवारी
कवि का ईमेल - vedprakasht13@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Thursday 14 November 2019

"बीमार दिल्ली" और "सत्ता" / वेद प्रकाश तिवारी की कविताएँ

आज के समय में जब देश के महानगर जानलेवा वायु-प्रदूषण के शिकार हैं और जब लोग बलात्कार जैसी घटनाओं पर बयान देते समय भी राजनीतिक हितों के कारणवश हिचकते हैं, श्री वेद प्रकाश तिवारी दो टूक शब्दों में कही बातों पर. गौर कीजिए-

1. बीमार दिल्ली

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विकास की अंधी दौड़ में 
शामिल हैं वे लोग
जिनकी महत्वाकांक्षा
नहीं करती गुरेज
प्रकृति के दोहन से
जिन्होंने दिया है दिल्ली को 
ऐसा रोग
जिसके कहर से 
बीमार दिल्ली ढूढ़ रही है 
अपना वास्तविक चेहरा
जो ढका हुआ है धुंध से
ये धुंध चेतावनी है संभलने की
यदि करते रहे नजरअंदाज
तो रखना याद
प्रकृति का ये कहर
नहीं बख्शेगा कोई शहर। 


 2. सत्ता

मर्यादा, आदर्श, कानून, संविधान की
परिधि के बीचो-बीच 
कुछ दरिंदों का शिकार 
हो जाती हैं बालाएं 
जो चीख- चीख कर 
तोड़ देती हैं दम
ऐसे में होता है 
समाज आंदोलित
माँगता है न्याय
उसमें कुछ विचारधाराएँ 
नहीं देती उनका साथ
उनका बोलना होता है निर्भर
हवाओं के रुख पर
वे निर्माण करती हैं
ऐसा समाज
जो हो मूल्यविहीन
और उन्हें पहुंचा सके
सत्ता के गलियारों तक
इसलिए वे ऐसे कृत्यों पर 
कर लेते हैं अपनी 
जुबान बंद
भले ही सामाजिक मर्यादा
होती रहे भंग। 
.....

कवि - वेदप्रकाश तिवारी
कवि का ईमेल - vedprakasht13@gmail.com
प्रतिकिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com



Wednesday 30 October 2019

Kuldeep Sarin - an actor full of potential

Interview

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‘My film, ‘Saand ki aankh’says that one never retires in life’, says Kuldeep Sarin

After having worked in more than 40 films and 35 TV series the Bollywood actor Kuldeep Sarin will now be seen in the film "Saand ki aankh" which was released on October 25. His role in the film is being liked by the film buffs across the country.

Excerpts of his exclusive interview_

Q. What is the film all about and how do you find your role in the film?
A. The film, made with a theme of woman empowerment, has been shot in a rural areas mostly. Hence I nodded in yes the moment the role as offered to me by its director, Gautam. I had an opportunity to work with filmstars like Tapsi Pannu, Prakash Jha and Bhoomi Pednekar.

Q. Please tell me about your character in the film.
A. I’ve essayed the role of traditional-minded husband of Bhoomi Pednekar in the film. I recognise my wife by the colour of Ghoonghat as spotted by her and not by name. This is the peculiarity about my role. I had started my career from ‘Crime Petrol’ TV serial and I am really very much happy about my journey so far in the film industry. I have acted as the younger brother of Prakash Jha in the film.    

 Q. Why you want cinegoers to watch the move, ‘Saand ki ankh?
A. The film is an inspiring film, based on a true story, which motivates aged persons to restart their life with a new leaf and that one never retires until one breathes one’s last.

Q. What are the films you have worked for in the recent past?
A. I’ve acted in the second lead in Indra Kumar’s film, ‘Phatee padi hai yaar’. I have also played an important role in a biopic on the nobel laureate, Malala Yousafzai, ‘Gul Makai’. I’m playing the role of a Pakistani Army officer in the film. Besides, I’m also working in films like ‘The Suitable Boy’ by Meera Nair, ‘The Lovers’ and ‘Phir se shaadi’.  The film is based on the theme of Triple Talaq and I’ve played the role of father of the lead actress. In the film, ‘Antarvyatha’, I’ve played the role of a lunatic person who has been imprisoned.   

Q. What is your future plan?
A. Well. I want to open a Film Training School at my native place, Gwalior so as to give a chance to the rural youth in the film world.  
....
Interview by - S. Das
Photos by - Kuldelep Sarin
Email for feedback - editorbejodindia@yahoo.com








Wednesday 23 October 2019

Akash Naik / A Kathak dancer and poet in Mumbai

An excellent artiste turned poet 

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Recently, one of our editors came across Mr.Akash Naik at The Club, Mumbai at Andheri during an event - "Different Strokes". Mr. Nayak was one of the seven poets who participated in the poem recital program. In our talk with him in the sidelines of the event it came out that Mr. Naik has been an excellent artiste in Kathak who is presently focusing on poetry.  

ઝંખના.  આકાશ નાયક.
ભૂરા આભમાં વહેતી વાદળી
લીલુંડી વાડી ને કથ્થઈ પંથે
ચાલ ચકરાવે ગુમ્યો 
કશે ના આવ્યો પવન ફરફરતો
સ્મિત શોધે ખુલ્લાં આકાશમાં
શાંત બની.
Clouds are roaming 
In blue sky
Green grass garden and 
Dark brown road to walk 
Life is moving in a circle.
Wind has lost its directions
Here life Comes in search of smile.
Without sounds.

Given below are some pics that throw light on his accomplishment: -

Email of Mr. Akash Naik - naik4459@gmail.com












Tuesday 8 October 2019

अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वारा डा. शिवदत्त शुक्ल स्मृति साहित्य भूषण सम्मान समारोह 5.10.2019 को सम्पन्न

श्रीहरि वाणी  एवं राधेकृष्ण चतुर्वेदी 'अबोध' को मिला सम्मान


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नवी मुंबई, 5 अक्टूबर 2019 की दोपहर में अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच एवं युवा कवि अरविंद पांडेय  के संयुक्त संयोजन में डा. शिवदत्त शुक्ल स्मृति साहित्य भूषण सम्मान समारोह ठाणे स्थित मराठी ग्रन्थ संग्रहालय के सभागृह में  सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम के आरम्भ होने पर सरस्वती वंदना आंभा दवे ने की। फिर मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने मंच का परिचय व स्वागत भाषण दिया और घोषणा की आने वाले समय में दो की जगह तीन लोगों को शामिल किया जायेगा जिसमें महिला और पुरुष दोनों साहित्यकारों का सम्मान होगा
 प्रमिला शर्मा जी के सुंदर संचालन में दूसरे साहित्य भूषण सम्मान को शानदार ढंग से संचालित किया। समारोह की अध्यक्षता पंडित किरण मिश्र (वरिष्ठ गीतकार), मुख्य अतिथि हरीश पाठक (वरिष्ठ पत्रकार एंव कथाकार),  विशेष अतिथि मुरलीधर पाण्डेय (वरिष्ठ साहित्यकार), अभिलाष अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार) एवं मुख्य वक्ता पवन तिवारी (युवा साहित्यकार) रहे।

दूसरे साहित्य भूषण सम्मान- 2019 कथाकार, पत्रकार हरीश पाठक, वरिष्ठ गीतकार किरण मिश्र के हाथों वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष अवस्थी, वरिष्ठ साहित्यकार  मुरलीधर पांडेय, युवा साहित्यकार पवन तिवारी की मंच की अध्यक्षा अलका पाण्डेय की उपस्थिति में सम्मान मूर्ति श्रीहरि वाणी  एवं राधेकृष्ण चतुर्वेदी "अबोध"  को प्रदान किया गया । इस अवसर पर दोनों विभूतियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर मुख्य वक्ता - पवन तिवारी ने श्रीहरि वाणी और  राधेकृष्ण 'अबोध' के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। तदुपरांत सभी अतिथियों ने सम्मान मूर्ति द्वय के व्यक्तित्व पर अपने विचार रखे।

इस अवसर पर महानगर के अनेक साहित्यकार, पत्रकार, कवि एवं बुद्धिजीवी उपस्थित रहे जिनमें विशेष रूप से रामप्यारे रघुवंशी, अनिल गुप्ता, नीरजा ठाकुर, आभा दवे, रश्मि नायर, शिल्पा सोनटके, अनिता रवि - अलका रागिनी, हरेम्ब तिवारी, विधु भूषण, शिव प्रकाश जौनपुरी, दिनेश बैसवारी, आनंद मिश्र, अजय शुक्ल, संदीप पाटील, किसान तिवारी, अविनाश सूर्यवंशी, आशीष कुमार, ओम प्रकाश सिंह उपस्थित रहे। समारोह के अंत मे अंरविद पाण्डेय ने सबका आभार व्यक्त किया ।
.....

आलेख - अलका पाण्डेय
छायाचित्र - अ.भा. अग्निशिखा मंच
प्रतिकिर्या हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com





Thursday 19 September 2019

एक फ़ौजी के बॉर्डर पर चले जाने के बाद / कवयित्री - सीमा सिंह, मुम्बई विश्ववि.

फौजी से आशिकी और मुहब्बत 
कविता 

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एक फ़ौजी के बॉर्डर पर चले जाने के बाद
शक्तिविहीन मुस्कुराहट के साथ जीते हैं
माता-पिता, भाई-भाभी, घर के बच्चे और इन सबके अलावा भी
कहीं बंद कमरे में सिसकती है
उनकी शरीक-ए-हयात।

दोनों ने क्या खूब मोहब्बत की
है मीलों की दूरी और
बिना नेटवर्क बातें अधूरी
एक दूजे को याद कर 
कर लेते हैं दोनों ही
अपने दिल की बात 
एक फ़ौजी के बॉर्डर पर
चले जाने के बाद

खुद से गिले-शिकवे करती हैं
पिछली बार का किस्सा
अब भी मुझे याद है
सिक्किम के पहाड़ों में
मुझसे बात करने के लिए
मीलों चल कर बर्फ़ीले तूफ़ान में
आपका बर्फ़ होना कमाल है
आपकी आशिकी और मुहब्बत मुझसे बेशुमार है

इस बार वादा किए थे घर आ जाएँगे आज
सुबह से शाम और शब गुज़र गई
न मैसेज कोई आया
न आपके नाम की रिंग बजी
मैं इंतज़ार करती रह गई
और नहीं आए आप..
वाकिफ़ होंगे आप ही
कहीं बंद कमरे में सिसकती है
आपकी शरीक-ए-हयात।

बॉर्डर पर ड्यूटी में तैनात
फ़ौजी के दिल से भी
आती है ये सदा

इक खुद से ग़िला बाक़ी रहा
दुनिया को छोड़ सिर्फ़ तुमसे मैं वाकिफ़ रहा
है तुम्हें क्या इल्म मिरे साहिब
महफ़िल में रह कर भी
तुम बिन मैं तन्हा ही तन्हा रहा

तुम्हीं न कहती थी
फौज़ी से मोहब्बत है
दूँगी साथ चाहे जो हो हालात
यही सेना की ड्यूटी है
ज़ीरो मिनट में हो जाना है तैयार
हम जानते हैं
कहीं बंद कमरे में सिसकती होगी
 हमारी शरीक-ए-हयात।

अबकी छुट्टी मंजूर हो गई है,
ज़रूर आएँगे हम, थोड़ा और 
इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार...
.....

कवयित्री - सीमा सिंह
पता - शोधार्थी, मुम्बई विश्ववि., मुम्बई
कवयित्री का ईमेल - seema16phd@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Monday 16 September 2019

रोटी का सवाल है / कवयित्री - अंकिता साहू, इलाहाबाद विश्ववि. (उ. प्र.)

क्योंकि ये रोटी का सवाल है
कविता

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होना चाहता हूं स्वतंत्र
पर ग़ुलाम हो गया खुद का मैं
क्या करूँ ये गलती नहीं मेरी
रोटी का सवाल है।

बनना चाहता हूं कलाकार
पर खेल रहा हूं लोहे के औजारों से
क्या करूँ मर्ज़ी नहीं मेरी
ये तो रोटी का सवाल है।

खोद रहा हूँ गड्ढा
पाट रहा हूँ रचनातमकता
उगा रहा हूँ धन के पेड़
काम नहीं है ये मेरा
पर क्या करू रोटी का सवाल है।

सपनो की फटी कथरी पर
जरूरत की खोल चढ़ा रहा हूं
अपनी नैसर्गिकता पर नौकरी की चादर चढ़ा रहा
क्या करूँ नियति नहीं ये
रोटी का सवाल है।

जानता हूं कि कृतियाँ पेट नहीं भर पाती
नही लड़ पाती परिस्थितियों से
हो जाती है नतमस्तक भविष्य की मांगों के आगे
इसलिए कर रहा हूं मजदूरी
क्योंकि ये रोटी का सवाल है।
...
कवयित्री - अंकिता साहू
पता - इलाहाबाद विश्ववि. (उ.प्र.)
कवयित्री का ईमेल - sahu49206@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Wednesday 4 September 2019

इश्क की चुस्कियाँ / कवयित्री - अंकिता साहू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय (उ.प्र.)

कविता

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सुनो न!
चलो फिर से दिल की अदला बदली करते हैं
पर, कुछ सौदेबाजी के साथ!

तुम अपना अहम रोज़ शक्कर की तरह चाय में घोल देना
और मै अपनी नाराज़गी टी बैग की तरह
फिर दोनों साथ में गर्म इश्क़ की चुस्कियां लेंगे।

अपनी व्यस्तता को तुम जरा खूंटी में टांग देना
 मैं गुस्से को झटक कर कूड़ेदान में फेक दूंगी
फिर दोनों साथ में घर को खुशियों से सजा देंगे।

तुम अपनी परेशानियों की बाहें मेरे गले में डाल देना
मै अपने गम के आंसुओ को तेरे सीने से लगा दूंगी
फिर दोनों साथ में उस के आलिंगन का मज़ा लेंगे।

तुम अपने 'मैं' के हथौड़े को घर से बाहर फेंक देना
मै अपने गुरूर की कील दीवार से उखाड़ दूंगी
फिर दोनों साथ में 'हम' की एक सुंदर तस्वीर सजाएंगे।
...
कवयित्री - अंकिता साहू
इलाहाबाद विश्ववि. (उ.प्र.)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


Sunday 25 August 2019

एक सच / कवयित्री - सीमा सिंह, मुम्बई विश्वविद्यालय

कविता

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सुनो अब हमारे खिलाफ़ एक और  दुश्मनी मोल ले लो तुम
कागज़ पर उकेरने जा रही हूँ तुम्हारा एक सच
हाँ तुम वही हो
जो हमें हमारे कपड़ों की वजह से नही
बल्कि एक स्त्री  होने के नाते
भरी भीड़ में भी
स्तन से जाँघों तक घूर लेते हो 
हमें भी अपने जैसा एक इंसान नहीं बल्कि
माँस के टुकड़े समझ झपटने की लोभी कोशिश कर लेते हो तुम
ना देखी हमारी उम्र, ना देखी हमारी सीरत,
बस एक मांसल देह मसलने के जुनून में
आँचल के चिथड़े कर जाते हो तुम
बस इतने पर ही खत्म नहीं होती पहचान तुम्हारी
उफ़्फ़..
ज़रा सब्र तो करो

तुम एक बार विशीर्ण कर देते हो हमारे शरीर को
औऱ अदालत की तरह  बना हुआ तुम्हारा ये समाज
ताउम्र हमारी सुनवाई लगाने को
हर पल नए ठहाकों  की महफ़िलें सजवाता है
जिसमें अपने सुकर्मों को ब्यौरा देकर
रौनकें दमका जाते हो तुम

सुनो 
अब एक ग़लतफ़हमी में जी रहे हो तुम
क्योंकि रौंदते हो तुम बस हमारे शरीर के हाड़-मांस को
पोर-पोर छलनी करते हो तुम बस इसके हर एक चाम को

लेकिन
हम में बसे आत्मदेह मनोबल और संबल को विदीर्ण करने के लिए
अब भी सरापा अपाहिज  हो तुम
...

कवयित्री - सीमा सिंह
पता -हिंदी विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


Monday 12 August 2019

"नई धारा" के वर्ष 2019 के साहित्य पुरस्कार - नरेश सक्सेना (जन्म - ग्वालियर,म.प्र.) को उदयराज सिंह सम्मान एवं श्यौराज सिंह बेचैन, देवशंकर नवीन तथा राजकमल को नई धारा सम्मान


"नई धारा" पिछले 70 वर्षों से प्रकाशित हो रही एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका है जो प्रतिवर्ष देशभर के साहित्यकारों में चार का चयन करती है  इस बार पुरस्कार पानेवालों में  उदयराज सिंह स्मृति सम्मान (1 लाख रुपये) पेशे से इंजीनियर रहे नरेश सक्सेना तथा 25-25 हजार रुपयों के नई धारा सम्मान पानेवाले दलित लेखक श्यौराज सिंह 'बेचैन', देवशंकर नवीन तथा राजकमल हैं. जहाँ नरेश सक्सेना का जन्म ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था वहीं देवशंकर नवीन बिहार में तथा अन्य दो उत्तर प्रदेश ने जन्म लिया है. विशेष जानकारी दूसरे चित्र में नीचे उपलब्ध है.
...
- बेजोड़ इंडिया ब्यूरो
(समाचार की पुष्टि व्हाट्सएप्प नम्बर 09334333509 से की गई है.)
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Saturday 3 August 2019

मनु कहिन (7) - जीवन चक्र

जीवन चक्र 

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अरे भाई ये कल की ही तो बात है! कल तक खेलते कूदते, जमाने से बेपरवाह, व्यावहारिकता से कोसों दूर, खुद स्कूल जाते जाते कब कालिज में पहुंच गए पता ही नही चला। थोड़ा दौर बुरा था।यह वो दौर था जब स्कूल कालेजों में पढ़ाई का स्तर गिरना शुरू हुआ था। आगे की राह कितनी कठिन होने वाली थी, अंदाजा न था। खैर! पढाई खत्म होते होते एक बड़े, बहुत ही बड़े कैनवास के हिस्सा बन लिए। 

भाई ! एक अदद सरकारी नौकरी लग गई। समय बड़ी तेजी से पंख लगा कर उड़ रहा था। ये वो समय था जब आपको समय के साथ साथ संतुलन बैठाते हुए अपने आप को आगे बढ़ाना था। पर, शायद परिपक्वता नही आई थी। जो मिल गया उसे ही मंजिल समझ बैठे। आज की राजधानी एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर एक से छूट चुकी थी। जाहिर है, अब तो कल ही मिलेगी। अगले जन्म का इंतजार रहेगा। व्यक्ति हमेशा भविष्य में ही जीता है। भूतकाल पीछा नही छोड़ता है और वर्तमान स्वीकार नही कर पाता है। भाई, प्रारब्ध है ये। करना ही पड़ेगा। चंद्रयान कक्ष में स्थापित हो चुका है।

नौकरी के बाद जैसा कि अक्सर होता है। शादी हो जाती है। कुछ दिनों की मस्ती फिर जिम्मेवारियों का बोझ अब बढ़ना शुरू हो जाता है। दवाब कब तनाव में तब्दील हो जाता है। अब अहसास हो चला था। बच्चों की परवरिश, उनकी पढ़ाई,  समय पंख लगा कर उड़ चलाथा। हम प्रत्येक क्षण आगे बढ़ते जा रहे थे। बहुत कुछ पीछे छोड़ते हुए। समाज परिवार! कुछ तो ऐसे छुटे कि जिनकी अब यादें ही शेष हैं। काश वो दिन लौट कर आ पाते। बचपन में तारों को दिखाकर मां बताया करतीं थी, वो देखो वहां हैं सभी। यह सब लिखते हुए कब कोर भींग गए पता ही नही चला। 

परेशानियों, दवाबों और तनावों के बीच बहुत कुछ पता नही चलता है। बच्चे कब बड़े हो जाते हैं। कब वे अपना रास्ता चुन लेते हैं। बिल्कुल पता नही चलता है। शुरुआत में सब अच्छा लगता है। बदलाव कब और किसे बुरा लगा है भला! पर, देखिए आप फिर से अकेले हो गए। अब तो आपके दोस्त भी नही रहे सब कुछ छूटता जा रहा है। 

आप कब शर्मा जी और शर्मा साहब हो गए। आप तो आप रहे ही नही। आप तो सिर्फ़ किरदार निभाते रहे। किरदार निभाते निभाते कब आप बदल गए खुद आप नही जान पाए। देखिए साहब आप तो एक बेहतरीन अभिनेता हो गए। पर, साहब निर्देशक तो कोई और है। आप अभिनय करते रहते हैं पर, आपको जीवनभर निर्देशक का पता नही चलता है। ढूंढते रहते हैं हम सभी।यही तो जीवन है। यही सच्चाई है मेरे दोस्त। मान लें। दुबारा कुछ नही मिलना है। और जो मिल चुका है, उसे जाना भी नही है। 
.......

आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com



Monday 29 July 2019

मनु कहिन (6) - जानवर कौन?

जानवर कौन?

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अब देखिए न बस कल की ही तो बात है। मैं सुबह की सैर से वापस घर की ओर लौट रहा था। मेरे घर के रास्ते में एक बडा सा लगभग चार किलोमीटर का एक फ्लाईओवर पडता है। जब उस फ्लाईओवर के बीचों-बीच जब मैं पहुंचता हूं तो क्या देखता हूँ, एक बड़ा सा घोड़ा सडक के बीचों-बीच खड़ा है। उसके दोनों पैर नीचे से टखनों के पास से बिल्कुल मुड़े हुए हैं। वो चलने मे लगभग असमर्थ है।

उसे इस हाल में देखकर मुझे दुख  के साथ साथ एक ख्याल भी आया कि बताइए जब यह घोडा स्वस्थ रहा होगा तो इसने अपने मालिक की कितनी सेवा की होगी। उसके एक इशारे पर इसने अपना तन और मन दोनों लगा दिया होगा। हो सकता है कि उसके जीविकोपार्जन का यह एक मुख्य स्तंभ भी हो। खैर! चलिए, जो आपके साथ अपने अच्छे दिन कहें या यूं कहें जवानी के दिनों में, जब यह स्वस्थ हुआ करता था,  आपकी जी जान से सेवा की, आप उसके बुरे दिनों में उसे कैसे भूल सकते हैं?  इतना कृतघ्न, इतना निर्दयी कोई कैसे हो सकता है?

हमलोग बोलचाल में उपमा दिया करते हैं कि कोई कैसे जानवरों की तरह व्यवहार कर सकता है। मनुष्य इतना निर्दयी नही हो सकता है। पर, शायद उस घोड़े को इस हाल में देखकर मेरा मिथक टूट गया। 

आप कभी कोण बदल कर देखें। थोड़ा सा धुन बदल कर देखें। अपने आप को उस हाल मे रख कर थोड़ा सोचें। थोड़ी जगह दें अपने आप को।थोड़ा सा चश्मे का नंबर बदल कर देखें। थोड़ा प्रयास तो करें। बहुत तकलीफ होगी आपको। मुझे भी हो रही है। वैज्ञानिकों ने यह तो बहुत पहले ही सिद्ध कर दिया था कि पेड़ पौधों में भी जान होती है। मेरे भाई, यह तो जानवर है। ठीक है, बेजुबान है ये। पर, इसकी एक भाषा तो है।  ये हमसे आपसे संवाद स्थापित नही कर सकता  पर, आवाज तो  इसके पास  भी है। 

जरा इसके आंखों में देखें। दर्द दिखाई देगा। एक बेचारगी भी दिखाई देगी। घोडा है यह। अपने स्वस्थ  दिनों में इसने आपकी सेवा ही की है। बिल्कुल नि:स्वार्थ सेवा। कुछ तो सिला दें इसकी सेवा का। कम से कम चैन से इसे इस दुनिया से विदा तो लेने दें। भूखे लावारिसों की तरह तो मरने के लिए  तो न छोड़ दे। यूं ही घोड़ों की जिंदगी बहुत नही होती।
( *यहां घोड़ा एक प्रतिकात्मक शब्द है )* 
........

आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
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मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह / कवि - अशवनी 'उम्मीद'

मानसून पूरे देश में सक्रिय हो चुका है, और हमारे देश में वर्षा का आगमन केवल ऋतु नही त्यौहार एवं पर्व माना जाता है, निश्चित ही हर्षोल्लास का विषय है परन्तु साथ ही जब कभी देर तक जोरदार बारिश होती है तो मायानगरी मुंबई के एक पुराने (26 जुलाई 2005) ज़ख्म की टीस उभरती है. मुंबई की उसी घटना की स्मृति को केन्द्र में रखकर कवि ने इस रचना का निर्माण किया है.

मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

(मुख्य पेज देखिए- https://bejodindia.blogspot.com/ हर 12 घंटों पर जरूर देखें- FB+ Watch Bejod India)




आओ अतिथि बन के न कि आतताई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

आओ तुम बरसात लेकर 
खुशियों की सौगात लेकर
पर न आना फिर कभी तुम बाढ़ के हालात लेकर 
आओ तो सब करें स्वागत जैसे आई हो बारात 
जाओ तो सब रोये बेटी की बिदाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

मुल्क में बरकत के जैसा
खेत में अमृत के जैसा
खूब बरसो दश्त ओ सहरा में किसी रहमत के जैसा
खूब वीरानों में बरसो तोड़ के तुम कीर्तिमान
पर शहर में बरसना तुम खुशनुमाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

हर्ष,आशा, कष्टमोचक, गर्व और सम्मान बन के
अतिथि तो भगवान जैसा आओ तुम भगवान बन के
पर न आना एक अहंकारी का तुम अभिमान बन के
वध नहीं निर्दोष का करना कसाई की तरह 
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

थे सभी भयभीत और रूक सी गई थी सबकी श्वास
कड़कती बिजली में तुम क्यो कर रहे थे अट्टहास
दृश्य ऐसा कि अदृश्य हो गई थी सारी धरा
ऐसी क्या नाराज़गी बरसे फिदाईं की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

जब समन्दर ने किया इंकार जल लेना तेरा
त्राहि त्राहि मच गई और कांप उठी थी धरा
तैरते थे शव तेरे बरसाए जल की सतह पर
एक दिन में बरसे तुम ग्यारह सौ मिलीमीटर
याद आता है वो दिन सबको बुराई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

सत्य ये भी है कि केवल दोष तेरा ही नहीं
कुछ तो हाई टाईड बेहतर थी व्यवस्था भी नहीं
पर यदि तुम न दिखाते अपना वीभत्स रौद्र रूप
छवि न बनती तुम्हारी ये भयानक और कुरूप
तुमसे विनती है कि अब ऐसा नहीं करना कभी
तुम हो जीवन मृत्यु का ये रूप न धरना कभी
तुम हृदय में सबके रहते हो विशिष्ट स्थान पर
आस्थाएं ऐसी तुमपे जैसी हो भगवान पर
कामना है बस यही तुम पूज्य ही सबके रहो
याद रक्खे सब तुम्हें नेकी भलाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह

मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह
मेघ फिर न बरसना छब्बीस जुलाई की तरह......
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कवि- अशवनी "उम्मीद" लखनवी*
कवि का ईमेल - mehrotraashwani@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
नोट : ऊपर के दोनों चित्र 26 जुलाई 2005 की बरसात के है और अंतिम 2019 का है.