Tuesday 23 January 2018

बुद्धा स्मृति पार्क, पटना - विश्व के पर्यटकों का केंद्र / 23.1.2018 के कुछ चित्र

हाल के वर्षों में आकर्षण के कुछ नए केंद्र स्थापित हुए हैं. इन भव्य निर्माणों के लिए प्रांतीय सरकार बधाई की पात्र है. इन नवीनतम विशाल अति सुंदर भवनों में से हैं- 1.अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय, बेली रोड  2. बुद्धा स्मृति पार्क, 3.लेजर कलरों  के साथ  4. बापू सभागार,पटना एवम अद्भुत शो आदि. 
 पार्क में धूप सेंक रहे इन युवकों से पहले मेरी कोई मुलाकात या जान पहचान नहीं था. बस उनके कहने पर फोटो ले लिया.















Monday 22 January 2018

वसन्त पंचमी पर विशेष / हे वासन्ती तू खूब गजब - राजकुमार भारती

वासंती निराली पराग रस

वासंती निराली पराग रस
वैभव कितनी सुन्दर ये सरस
झर गये पुराने सब सूखे पत्र
नव कली कुसुम सतरंग छत्र 

चम्पा चमके चम चम चम चम
जूही गमके गम गम गम गम
जल के अंदर भी खिले कमल
मन भौंरा गूँजता हो विकल

सतरंग हृदय हो चहक महक
महका जो बसंती फूल थिरक 
सबके मन में उल्लास भरा
उर अति आनंद से भरा परा

जैसे नहले पर दहला हो 
सोने पर सुहागा जैसा हो
जैसे  मन को अमृत हो मिला
फुदके हो विभोर पीकर प्याला

नाचे मन मधुर झमक झम झम
महके अंगना गम गम गम गम
कितने निर्मल श्रृंगार अजब
हे वासन्ती तू खूब गजब
......
कवि - राजकुमार भारती
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com
कवि-परिचय: कवि अंगिका और हिन्दी के जाने-माने कवि होने के साथ-साथ निपुण रंगकर्मी और गायक भी हैं. ये आयकर अधिकारी के पद पर भारत सरकार के एक कार्यालय में सेवारत हैं.



Saturday 13 January 2018

स्वर्णिम युवा / जिन्दगी एक छोटा सा ख्वाब : कवयित्री - गीतांजलि कुमारी :

जिंदगी एक छोटा सा ख्वाब 



जिंदगी एक छोटा सा ख्वाब 
लोगों की ख्वाहिशें बेहिसाब 
चाहते हैं बहुत कुछ 
मगर भूल जाते हैं
हैं कुछ ही पल इस जिन्दगी में 
बनाना हो खूबसूरत तो आज को बनाओ 
कल किसने देखा 
जो करना है अभी कर जाओ.

वक्त पर न पहरा किसी का 
यह तो न है मोहरा किसी का 
चलता  है यह अपने हिसाब से 
हम ही अक्सर भूल जाते हैं 
अपने बेहिसाब ख्वाहिशों में 
यह तो एक खेल है 
खूबसूरत ज़िन्दगी का 
ख़ुशी और गम है हिस्सा  इसी का

समझने वालों के लिए कट जाती है बड़े शौक से 
न समझाने वालों के लिए 
अनसुलझी अनजानी सी 
उलझ जाती है अक्सर कहानी सी.
.....
कवयित्री - गीतांजलि कुमारी 
उम्र - 22 वर्ष  
छात्रा - बी. कॉम (तृतीय वर्ष) 
व्यावसायिक शिक्षा - सी. एम. ए. (अध्ययनरत)
कलात्मक शिक्षा - कत्थक (प्रशिक्षणरत) 
आत्मकथ्य - जीवन और परिस्थितियाँ मुझे कविता लिखने की प्रेरणा देती है. 
ईमेल - geetanjaliprasad344@gmail.com
प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी भेजी जा सकती है - hemantdas_2001@yahoo.com











Wednesday 10 January 2018

चंपारण आन्दोलन के सबसे बड़े जानकार और कैथी लिपि के सबसे बड़े उद्धारक भैरब लाल दास

हाल ही में देश के चंपारण आन्दोलन के देश भर में सबसे बड़े जानकार, स्वत्रंत्रता आन्दोलन के समय तक उत्तर भारत में सबसे अधिक प्रचलित रही और जमीन जायदाद के दस्तावेज की अब तक की लिपि कैथी लिपि के संरक्षण के सबसे बड़े स्तम्भ, मिथिला संस्कृति और इतिहास के बड़े विद्वान् और डॉ. नित्यानंद लाल दास के साथ मिलकर भारतीय संविधान का मैथिली में अनुवाद करनेवाले भैरब लाल दास जी से उनके आवास पर मिलने का सुअवसर मिला. इनके कार्यों की उपलब्धियां इतनी अधिक हैं कि उस पर लंबा लेख लिखा जा सकता है. उस पर बाद में कभी बात करेंगे. मेरे अनुमान के अनुसार इनकी उम्र पचास से बहुत कम है परन्तु कार्य इतने सघन हैं कि बड़े बड़े बुजूर्ग भी अचंभित रह जाएँ. अत्यधिक क्रियाशील व्यक्ति हैं. अपने सांस्कृतिक लेखों और क्रियाकलापों के चलते अख़बारों में लगातार प्रमुखता से छापे जाते हैं.

यहाँ सिर्फ एक बात मैं बताना चाहूँगा कि मेधावी छात्र होने के बावजूद गलत विषयों के चुनाव के कारण इनका परीक्षाफल इंटर में बहुत खराब रहा और इन्हें काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी. तभी इन्होने ठान ली कि स्नातक में कुछ कर के दिखाना है. स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों में विश्वविद्यालय में द्वितीय रहे. प्रथम स्थान नहीं पाने का कारण हमारे राज्य में क्या होता रहा है ये आप सभी अच्छी तरह जानते हैं. उस विवाद को मैं यहाँ नहीं उठाना चाहता हूँ.

ये चाहते तो यूपीएससी या बीपीएससी की तैयारी करके शीर्ष अधिकारी बन सकते थे किन्तु पारिवारिक हालात ऐसे थे कि तुरंत नौकरी पकडनी पड़ी अभी बिधान परिषद् में प्रोजेक्ट ऑफिसर के पद पर पदस्थापित हैं . लेकिन बिहार के सभी सुधी लोग इन्हें महान इतिहासकार और संस्कृतिविज्ञ के रूप में जानते हैं.

बिहार से जन्मी भारत की दो अमूल्य ऐतिहासिक निधि - चंपारण आन्दोलन और कैथी लिपि को देश में उचित स्थान दिलाने का सफल प्रयास करनेवाले बिहारी संस्कृति के महान संरक्षक भैरब लाल दास को बिहारी धमाका की ओर से हार्दिक नमन.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com


Monday 8 January 2018

दरभंगा में 24 से 31 जनवरी,2018 तक चित्र प्रदर्शनी एवं कार्यशाला का आयोजन


महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा में दिनांक 24.01.2018 से 31.01.2018 तक संग्रहालय सप्ताह मनाया जाएगा | इस कार्यक्रम में चित्र प्रदर्शनी तथा कार्यशाला का आयोजन करने की योजना है | स्थानीय लोगों,छात्रों एवं अन्य विद्वानों को आमंत्रित कर चित्र प्रदर्शनी के माध्यम से अपने गौरवशाली धरोहर के विषय में जानकारी दी जाएगी | चित्र प्रदर्शनी का आयोजन तीन प्रकार के थीम पर आधारित होगा | पहले खण्ड में दरभंगा जिला के प्राचीन प्रतिमाओं के विषय में जानकारी होगी तो दूसरे में इस क्षेत्र के हेरिटेज भवन के विषय में एवं तीसरे खण्ड में मिथिला पेंटिंग के माध्यम से दहेज प्रथा एवं बालविवाह जैसी कुरीतियाँ एवं उसके निदान के विषय में जानकारी रहेगी | इसके माध्यम से यह साबित करने का प्रयास किया जाएगा कि जब प्राचीन मिथिला में नारी शिक्षा सुदृढ़ थी तो बालविवाह एवं दहेज प्रथा भी नहीं था | इस घटना को चित्र के माध्यम से साबित किया जाएगा कि नारी शिक्षा को बढ़ाबा दे कर ही इनका अंत किया जा सकता है | इसके लिए प्रसिद्ध मिथिला चित्रकारी विशेषज्ञा श्रीमती अलका दास से सहयोग लिया जा रहा है | इसी तरह धरोहर भवन प्रदर्शनी के लिए प्रसिद्ध धरोहर प्रेमी श्री संतोष कुमार (ललित नारायण मिथिला विश्वविध्यालय) एवं INTACH  से सहयोग लिया जाएगा | कार्यक्रम का दूसरा एवं महत्वपूर्ण पक्ष पुरालिपि कार्यशाला का आयोजन होगा, जिसके अंतर्गत तिरहुता / मिथिलाक्षर से सम्बंधित पांच दिवसीय कार्यशाला / प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा, इसके लिए कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविध्यालय के व्याकरण विभागाध्यक्ष तथा पुरालिपि विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉ० शशिनाथ झा एवं महावीर मंदिर, पटना के शोध एवं प्रकाशन पदाधिकारी पंडित भावनाथ झा से सहयोग की सहमती मिल गयी है | कार्यशाला के लिए पंजीकरण 10 जनवरी से 20 जनवरी तक संग्रहालय में होगा, इसके लिए शैक्षणिक योग्यता स्नातक निर्धारित की गयी है | संस्कृत, प्राचीन इतिहास तथा मैथिली विषय से सम्बंधित प्रतिभागियों तथा शिक्षक एवं महिला को प्रशिक्षण के लिए प्राथमिकता दी जाएगी | 

यह जानकारी डॉ० शिव कुमार मिश्र, सहायक संग्रहालयाध्यक्षमहाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा द्वारा प्राप्त हुई जिनका मोबाइल नम्बर है- 9835884843, 9122686586
                     
                                                                                                                                               

Sunday 7 January 2018

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ / शिवम रूपम







नोट - शिवम रूपम स्टेट बैंक ओफ इंडिया में  सहायक महाप्रबंधक के पद पर सेवारत हैं और अपने कार्यालय के काम में प्रवीण होने के साथ-साथ मौलिक दर्शन में भी रूचि रखते हैं जो बचपन से ही इनकी प्रवृति रही है.
शिवम रूपम का सोशल वेबसाइट- https://www.facebook.com/shivam.rupam


लाला आशुतोष कुमार शरण -एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार

पहली कविता 
अलविदा


चल दिए बिना अलविदा कहे
मन इसको कैसे सहन करे ।
अंसूवन बिन तुमको विदा करूं,
यह वादा मैं न निभा पाया ।
 अंखियों के सावन-भादो पर ,
विवश हूं अपना जोर नहीं ।
 ये अश्रु नहीं हैं श्रद्धा सुमन,
 तेरे जज़्बा को कर रहे नमन ।
 जब तक पिंजर में सांसें मेरी ,
 तब तक पिंजरे  में यादें तेरी ।
 मैंने अपना वादा निभा दिया ,
 तुमको सुहागन विदा किया ।
एक दिन मैंने तेरी मांग भरी ,
 और अपने घर ले आया तुम्हें ।
आज भरी तेरी मांग पुन: ,
 पर अपने घर से अलविदा किया ।
 कुछ समय तो ऐसा लगा मुझे,
जीने की इच्छा नहीं रही ।
 पर भीष्म पितामह नहीं हूं मैं,
 जीने के लिए जीना है मुझे ।
 तेरी बग़िया के वृक्षों के तले,
 जीने का मक़सद मिला मुझे ।
 मैं मिलूंगा तुमसे वादा रहा ,
 भगवान से भी क्यों न लड़ना पड़ेगा ।
 है कई जन्मों का संग हमारा ,
आगे भी मिलेगा साथ तुम्हारा ।


दूसरी कविता 
   धरती पर स्वर्ग को पाने को 

उस डगर को पाने निकल पड़ा , जहाँ प्रेमसुधा की वर्षा हो .
इमान धर्म से दूर हो, धर्मों के बीच कटुता हो .
मन्दिर,मसज़िद,गुरूद्वारे स्नेह का झरना बहाते हों,
बाइबल हो या वेद-क़ुरान,सभी इनको शीष नवाते हो,
होली-लोहड़ी,क्रिसमस-ईद, जहाँ मिलकर साथ मनाते हों।

उस नगर को ढूढ़ने निकल पड़ा , जहाँ प्रेम हृदय में बसता हो,
जवान-किसान कोरे नारों से,जहाँ छले जते हों,
शहीदों के परिजन जहाँ ,खून के आंसू रोते हों,
वीरागंना इतिहास के पन्नो तक  सीमित रखी जाती हों,
पद्मिनीयाँ लाज बचाने को,जहाँ जीवन का होम करती हों,
नरी का हो मान बड़ा,नारीत्व सिसकियाँ भरता हो,
सत्यसुधा की सरिता हो,जहाँ वीरों की खेती होती हो।

उस देश को पाने निकल पड़ा,जहाँ रामराज्य की खुशबू हो,
जनसेवक हों जनशाह नहीं,श्रमजीवी हों श्रमखोर नहीं,
नर-नारी छूछे वादों से पेट जहाँ भरते हों,
असहिष्णुता का मिथ्या ढोल जहाँ पीटा जाता हो,
साहित्य समाज का सच्चा दर्पण हो, और न्याय विवश दिखता हो,
जहॉ नदियों का हो जाल बिछा और धरती सोना उगलती हो,
हरियाली नैनों को शीतल करती हो /
और खुशहाली सतरंगी छटा बिखेरती हो,             
शरणऐसी धरा को ढूढ़ने निकल पड़ा /
धरती पर स्वर्ग को पाने को.
....

रचनाकार -डॉ.लाला आशुतोष कुमार शरण
लाला आशुतोष कुमार शरण सेवानिवृत प्राध्यापक हैं और जे.एन. कोलेज, आरा में इनके अध्यापन का विषय रहा है रसायनशास्त्र. परन्तु ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और अपने विश्वविद्यालय के क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.  इन्होने अनेक नाटकों में अभिनय भी किया है और अनेक नाटक लिखे भी हैं. इन्होने दिल्ली में आयोजित युवा महोत्सव में भाग भी लिया था. हाल ही में इनकी धर्मपत्नी का निधन होने से ये काफी आहत हुए और पहली कविता में इन्होने अपने आत्मिक पीड़ा का बयान किया है. आगे इनकी योजना है एक नाटक संग्रह और काव्य संग्रह प्रकाशित करवाने की. इन्हें इनके पुत्रों का भरपूर सहयोग भी प्राप्त है जिनमें से एक सहायक आयकर आयुक्त के पद पर तैनात हैं.