Sunday 7 January 2018

लाला आशुतोष कुमार शरण -एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार

पहली कविता 
अलविदा


चल दिए बिना अलविदा कहे
मन इसको कैसे सहन करे ।
अंसूवन बिन तुमको विदा करूं,
यह वादा मैं न निभा पाया ।
 अंखियों के सावन-भादो पर ,
विवश हूं अपना जोर नहीं ।
 ये अश्रु नहीं हैं श्रद्धा सुमन,
 तेरे जज़्बा को कर रहे नमन ।
 जब तक पिंजर में सांसें मेरी ,
 तब तक पिंजरे  में यादें तेरी ।
 मैंने अपना वादा निभा दिया ,
 तुमको सुहागन विदा किया ।
एक दिन मैंने तेरी मांग भरी ,
 और अपने घर ले आया तुम्हें ।
आज भरी तेरी मांग पुन: ,
 पर अपने घर से अलविदा किया ।
 कुछ समय तो ऐसा लगा मुझे,
जीने की इच्छा नहीं रही ।
 पर भीष्म पितामह नहीं हूं मैं,
 जीने के लिए जीना है मुझे ।
 तेरी बग़िया के वृक्षों के तले,
 जीने का मक़सद मिला मुझे ।
 मैं मिलूंगा तुमसे वादा रहा ,
 भगवान से भी क्यों न लड़ना पड़ेगा ।
 है कई जन्मों का संग हमारा ,
आगे भी मिलेगा साथ तुम्हारा ।


दूसरी कविता 
   धरती पर स्वर्ग को पाने को 

उस डगर को पाने निकल पड़ा , जहाँ प्रेमसुधा की वर्षा हो .
इमान धर्म से दूर हो, धर्मों के बीच कटुता हो .
मन्दिर,मसज़िद,गुरूद्वारे स्नेह का झरना बहाते हों,
बाइबल हो या वेद-क़ुरान,सभी इनको शीष नवाते हो,
होली-लोहड़ी,क्रिसमस-ईद, जहाँ मिलकर साथ मनाते हों।

उस नगर को ढूढ़ने निकल पड़ा , जहाँ प्रेम हृदय में बसता हो,
जवान-किसान कोरे नारों से,जहाँ छले जते हों,
शहीदों के परिजन जहाँ ,खून के आंसू रोते हों,
वीरागंना इतिहास के पन्नो तक  सीमित रखी जाती हों,
पद्मिनीयाँ लाज बचाने को,जहाँ जीवन का होम करती हों,
नरी का हो मान बड़ा,नारीत्व सिसकियाँ भरता हो,
सत्यसुधा की सरिता हो,जहाँ वीरों की खेती होती हो।

उस देश को पाने निकल पड़ा,जहाँ रामराज्य की खुशबू हो,
जनसेवक हों जनशाह नहीं,श्रमजीवी हों श्रमखोर नहीं,
नर-नारी छूछे वादों से पेट जहाँ भरते हों,
असहिष्णुता का मिथ्या ढोल जहाँ पीटा जाता हो,
साहित्य समाज का सच्चा दर्पण हो, और न्याय विवश दिखता हो,
जहॉ नदियों का हो जाल बिछा और धरती सोना उगलती हो,
हरियाली नैनों को शीतल करती हो /
और खुशहाली सतरंगी छटा बिखेरती हो,             
शरणऐसी धरा को ढूढ़ने निकल पड़ा /
धरती पर स्वर्ग को पाने को.
....

रचनाकार -डॉ.लाला आशुतोष कुमार शरण
लाला आशुतोष कुमार शरण सेवानिवृत प्राध्यापक हैं और जे.एन. कोलेज, आरा में इनके अध्यापन का विषय रहा है रसायनशास्त्र. परन्तु ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और अपने विश्वविद्यालय के क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.  इन्होने अनेक नाटकों में अभिनय भी किया है और अनेक नाटक लिखे भी हैं. इन्होने दिल्ली में आयोजित युवा महोत्सव में भाग भी लिया था. हाल ही में इनकी धर्मपत्नी का निधन होने से ये काफी आहत हुए और पहली कविता में इन्होने अपने आत्मिक पीड़ा का बयान किया है. आगे इनकी योजना है एक नाटक संग्रह और काव्य संग्रह प्रकाशित करवाने की. इन्हें इनके पुत्रों का भरपूर सहयोग भी प्राप्त है जिनमें से एक सहायक आयकर आयुक्त के पद पर तैनात हैं. 








4 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद।

      Delete
  2. बहुत अच्छी कविता 👍👍💐💐

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद।

      Delete

Note: only a member of this blog may post a comment.