Thursday 19 September 2019

एक फ़ौजी के बॉर्डर पर चले जाने के बाद / कवयित्री - सीमा सिंह, मुम्बई विश्ववि.

फौजी से आशिकी और मुहब्बत 
कविता 

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एक फ़ौजी के बॉर्डर पर चले जाने के बाद
शक्तिविहीन मुस्कुराहट के साथ जीते हैं
माता-पिता, भाई-भाभी, घर के बच्चे और इन सबके अलावा भी
कहीं बंद कमरे में सिसकती है
उनकी शरीक-ए-हयात।

दोनों ने क्या खूब मोहब्बत की
है मीलों की दूरी और
बिना नेटवर्क बातें अधूरी
एक दूजे को याद कर 
कर लेते हैं दोनों ही
अपने दिल की बात 
एक फ़ौजी के बॉर्डर पर
चले जाने के बाद

खुद से गिले-शिकवे करती हैं
पिछली बार का किस्सा
अब भी मुझे याद है
सिक्किम के पहाड़ों में
मुझसे बात करने के लिए
मीलों चल कर बर्फ़ीले तूफ़ान में
आपका बर्फ़ होना कमाल है
आपकी आशिकी और मुहब्बत मुझसे बेशुमार है

इस बार वादा किए थे घर आ जाएँगे आज
सुबह से शाम और शब गुज़र गई
न मैसेज कोई आया
न आपके नाम की रिंग बजी
मैं इंतज़ार करती रह गई
और नहीं आए आप..
वाकिफ़ होंगे आप ही
कहीं बंद कमरे में सिसकती है
आपकी शरीक-ए-हयात।

बॉर्डर पर ड्यूटी में तैनात
फ़ौजी के दिल से भी
आती है ये सदा

इक खुद से ग़िला बाक़ी रहा
दुनिया को छोड़ सिर्फ़ तुमसे मैं वाकिफ़ रहा
है तुम्हें क्या इल्म मिरे साहिब
महफ़िल में रह कर भी
तुम बिन मैं तन्हा ही तन्हा रहा

तुम्हीं न कहती थी
फौज़ी से मोहब्बत है
दूँगी साथ चाहे जो हो हालात
यही सेना की ड्यूटी है
ज़ीरो मिनट में हो जाना है तैयार
हम जानते हैं
कहीं बंद कमरे में सिसकती होगी
 हमारी शरीक-ए-हयात।

अबकी छुट्टी मंजूर हो गई है,
ज़रूर आएँगे हम, थोड़ा और 
इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार...
.....

कवयित्री - सीमा सिंह
पता - शोधार्थी, मुम्बई विश्ववि., मुम्बई
कवयित्री का ईमेल - seema16phd@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Monday 16 September 2019

रोटी का सवाल है / कवयित्री - अंकिता साहू, इलाहाबाद विश्ववि. (उ. प्र.)

क्योंकि ये रोटी का सवाल है
कविता

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होना चाहता हूं स्वतंत्र
पर ग़ुलाम हो गया खुद का मैं
क्या करूँ ये गलती नहीं मेरी
रोटी का सवाल है।

बनना चाहता हूं कलाकार
पर खेल रहा हूं लोहे के औजारों से
क्या करूँ मर्ज़ी नहीं मेरी
ये तो रोटी का सवाल है।

खोद रहा हूँ गड्ढा
पाट रहा हूँ रचनातमकता
उगा रहा हूँ धन के पेड़
काम नहीं है ये मेरा
पर क्या करू रोटी का सवाल है।

सपनो की फटी कथरी पर
जरूरत की खोल चढ़ा रहा हूं
अपनी नैसर्गिकता पर नौकरी की चादर चढ़ा रहा
क्या करूँ नियति नहीं ये
रोटी का सवाल है।

जानता हूं कि कृतियाँ पेट नहीं भर पाती
नही लड़ पाती परिस्थितियों से
हो जाती है नतमस्तक भविष्य की मांगों के आगे
इसलिए कर रहा हूं मजदूरी
क्योंकि ये रोटी का सवाल है।
...
कवयित्री - अंकिता साहू
पता - इलाहाबाद विश्ववि. (उ.प्र.)
कवयित्री का ईमेल - sahu49206@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

Wednesday 4 September 2019

इश्क की चुस्कियाँ / कवयित्री - अंकिता साहू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय (उ.प्र.)

कविता

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सुनो न!
चलो फिर से दिल की अदला बदली करते हैं
पर, कुछ सौदेबाजी के साथ!

तुम अपना अहम रोज़ शक्कर की तरह चाय में घोल देना
और मै अपनी नाराज़गी टी बैग की तरह
फिर दोनों साथ में गर्म इश्क़ की चुस्कियां लेंगे।

अपनी व्यस्तता को तुम जरा खूंटी में टांग देना
 मैं गुस्से को झटक कर कूड़ेदान में फेक दूंगी
फिर दोनों साथ में घर को खुशियों से सजा देंगे।

तुम अपनी परेशानियों की बाहें मेरे गले में डाल देना
मै अपने गम के आंसुओ को तेरे सीने से लगा दूंगी
फिर दोनों साथ में उस के आलिंगन का मज़ा लेंगे।

तुम अपने 'मैं' के हथौड़े को घर से बाहर फेंक देना
मै अपने गुरूर की कील दीवार से उखाड़ दूंगी
फिर दोनों साथ में 'हम' की एक सुंदर तस्वीर सजाएंगे।
...
कवयित्री - अंकिता साहू
इलाहाबाद विश्ववि. (उ.प्र.)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com