Saturday 27 October 2018

स्मृतियाँ - भाषा सहोदरी हिन्दी के द्वारा 24 से 25 अक्टूबर 2018 तक दिल्ली में चलनेवाले कार्यक्रम का

"भाषा सहोदरी हिन्दी"
  दिल्ली की मधुर  स्मृतियाँ


"भाषा सहोदरी  हिन्दी "( दिल्ली) संस्थान का छठा अंतर्राष्ट्रीय  आयोजन  ने हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए बहुत ही अच्छ कदम उठाते हुए हम हिन्दी  भाषा ,भाषियों  को एक सूत्र में  बाँधने का महत्व पूर्ण  कार्य दिल्ली  में भव्य आयोजन आयोजित किया जो लगातार दो दिनों  तक दिनांक 24.10.18 से 25.10.18 तक दिल्ली के हंसराज कॉलेज में संचालित हुआ।

भारत के हर एक कोने से  साहित्कार और हिन्दी प्रचारक सम्मिलित  हुए। यह देख कर बहुत ही खुशी हो रही थी कि जहाँ  हम भारतीय भी कभी एक भाषा (हिन्दी) के अन्तर्गत जुड़ नहीं पाते थे वहीं आज एक प्रांगण में उपस्थित हो  हिन्दी  भाषा का मान बढ़ा रहें  थे। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोग तथा विदेशों से भी लोग उपस्थित थे।

ऐसा लग रहा था कि हमसब एक धागे में गूँथे रंग- बिरंगे मोतियों की  माला हैं; जो विभिन्न रंगों से बनी प्रतीत  हो रही थी। सभी राज्य और प्रांत क लोग अपनी- अपनी कविता ,कहानी के माध्यम से अपने भावों को हिन्दी  भाषा  में  पिरोहित  कर सम्मानित भाव से व्यक्त कर रहे थे।
यह कदम हिन्दी के स्वरूप को बढ़ाने का एक सफल और सशक्त  माध्यम था जिसका पूरा श्रेय हिन्दी  के गुणी ,ज्ञाता व्यक्ति  "भाषा सहोदरी  हिन्दी " के मुख्य संयोजक, प्रबंधक श्रीमान " जयकांत मिश्रा" जी को जाता है।

इन्होंने बड़े ही सराहनीय कार्य किया है; जो हम भारतीयों के लिए  गर्व की बात है। बिहार राज्य,पटना से हमलोंगों  को भी आने का अवसर   सौभाग्य प्राप्त हुआ हमलोंगों  ने भी अपनी प्रतिभागिता हिन्दी  के क्षेत्र में  निभाते हुए बढ़- चढ़ कर हिस्सा लिया इसके लिये  हमलोंगों  को भी परितोषित किये गये जिनमें  हमसब सहयोगी थे--- श्रीमान श्याम जी सहाय,श्रीमती  पुनम आनंद, डाॅ0 मंगला रानी, श्रीमती शालिनी पाण्डेय, डाॅ0 सीमा यादव, श्रीमती  अर्चना सिन्हा, प्रो0 डाॅ0 सुधा सिन्हा, श्रीमती सीमा रानी,श्रीमती सिंधु कुमारी, श्रीमती नीतू सिंह, श्रीमती सागरिका राय और विनीता शर्मा। सच में  यह कार्यक्रम बड़ा ही मनमोहक और आकर्षक  था जिसे भूल पाना असंभव  है।

ये माँगें उठाई गईं-हिन्दी को अनिवार्य घोषित करना चाहिए। न्यायपालिका की भाषा हिन्दी होनी चाहिये । हिन्दी में विज्ञान, वाणिज्य,  अर्थशास्त्र इत्यादि में शोध को बढ़ावा देना । कार्यालयों की भाषा हिन्दी होनी चाहिये  इत्यादि।

सीधी सी बात है हिन्दी जब तक अनिवार्य घोषित नहीं होगी तब तक अंग्रेजी की तरफदारी करने वालों का मुंह नही बंद होगा। चीन, फ्रांस सहित कई देश ऐसा कर चुके है हम क्यों नहीं?

उदघाटन पद्मश्री डॉ.  सी पी ठाकुर पूर्व केंद्रीय मंत्री एवम संसद , मुख्य अतिथि मैत्रीय पुष्पा जी अध्यक्षता श्री जितेंद्र मणि त्रिपाठी  डी सी पी , प्राचार्या डॉ रमा हंसराज कॉलेज , मुख्य सयोंजक जय कान्त मिश्रा  ने किया !
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आलेख- पूनम आनंद
छायाचित्र- पूनम आनंद
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com









Friday 26 October 2018

आरा के साहित्यकारों द्वारा हिमाचल प्रदेश के रहनेवाले कवि सुरेश सेन निशांत को श्रद्धांजलि

निशांत की प्रतिबद्धता उल्लेखनीय




सभी दुखी हैं
पेड़ों के कटने से
पहाड़ों के फटने से

पर सभी चुप हैं
इस चुप्पी की
सभी को मिल रही है सज़ा.
(- कुछ थे जो कवि थे)

आरा में गंभीर साहित्य सृजन की एक सशक्त परम्परा रही है वहाँ के साहित्यकार न सिर्फ अपने प्रदेश बल्कि देश भर के साहित्यकारों को पढ़ते रहते हैं और प्रेरणा लेते रहते हैं. हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सुंदर नगर के रहनेवाले प्रसिद्ध कवि सुरेश सेन निशांत जिनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं, का निधन हो गया

सुरेश सिंह निशांत के निधन पर आरा के साहित्यकारों ने दिनांक 24,10.2018 को 'मणिका' पत्रिका के कार्यालय में श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौक़े पर उनके रचना संस्मरण और राजेश जोशी द्वारा उनके कविता-संग्रह 'कुछ थे जो कवि थे' पर लिखा गया वक्तव्य भी अविनाश रंजन के द्वारा पढ़ा गया। बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि सेन देश के प्रसिद्ध कवियों में शुमार हैं। वे सिर्फ़ हिमाचल के कवि नहीं थे बल्कि देश की चर्चित कविताओं में उनकी कविताएं शुमार की जाती हैं।

'देशज' के संपादक और कवि अरुण शीतांश ने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हमने अभिन्न मित्र और देश के प्रमुख कवि को खो दिया है। उन्होंने पूरे हिमाचल प्रदेश की राजनीति की चर्चा की और 'चावल' कविता का पाठ किया। आलोचक व कवि सुधीर सुमन ने कहा कि ऐसे समय में किसी को अवसाद हो सकता है, पर सेन हमारे समय के ज़रूरी सवालों को उठा रहे थे, यह महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 'दु:ख-1' कविता का पाठ किया।

कवि व कथाकार सुमन कुमार सिंह ने कहा कि साहित्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को पूरा देश जानता था उन्होंने 'गुजरात' और 'पहाड़' कविता का पाठ किया।

चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि उनकी कविता आसपास की कविता है। आसमान में फैले धुएं और चिड़िया का जो वर्णन किया है वह अद्भुत है। कवि व आलोचक अविनाश रंजन ने सेन की कविताओं के बारे में राजेश जोशी के विचारों को पढ़ा।

संचालन करते हुए 'मणिका' के संपादक सिद्धार्थ वल्लभ ने 'मंदिर जाती औरतें' कविता का पाठ किया और पहल' पत्रिका में छपी कविता का ज़िक्र किया।

इस अवसर पर अंत में एक मिनट का मौन रखने के पूर्व रंगकर्मी श्रीधर शर्मा और रंजन यादव ने भी अपने विचार रखे।
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आलेख - अरुण शीतांश
फोटोग्राफ- अरुण शीतांश
प्रतिक्रिया हेतु इमेल आइडी - editorbiharichamaka@yahoo.com





Tuesday 16 October 2018

प्रेमचंद शरतचंद्र जयंती पुरस्कार वितरण समारोह, प्रे.श. मेमोरियल कमिटि द्वारा 15.10.2018 को पटना में सम्पन्न


प्रेमचंद शरतचंद्र जयंती पुरस्कार वितरण समारोह पटना के कालिदास रंगालय में 15.10.2018 को मनाया गया,  आयोजन प्रेमचंद शरतचंद मेमोरियल कमिटि पटना के द्वारा हर वर्ष आयोजित किया जाता है यह जानकारी कालिदास रंगालय के गार्ड संजय कुमार ने दी.

इस वर्ष मंच पर अरुण शाद्वल, मेहता नागेंद्र प्रसाद, बी.एन. विश्वकर्मा, श्रीकान्त व्यास आदि अनेक गणमान्य लोग मंचासीन थे.  सभी वक्ताओं ने प्रेमचंद और शरतचंद्र की कृतियों की चर्चा करते हुए उनसे बहुत कुछ सीखने की बात कही. अरुण शाद्वल ने कहा कि उन दोनों के साहित्य में आम आदमी का दुख दर्द है और उस समय उठाए गए विषय आज और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं.  बी. एन विश्वकर्मा ने इस अवसर पर  पुरस्कृत छात्रों को बधाई देते हुए उन्हें और भी आगे बढ़ने को कहा.

इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया गया. 
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नोट- इस कार्यक्रम की विशेष जानकारी आप ईमेल से editorbiharidhamaka@yahoo.com पर भेज सकते हैं. प्राप्त होने पर सत्यापन के बाद जोड़ी जाएगी.











Sanjay Kumar, Guard, Kalidas Rangalaya,  Patna
संजय कुमार, गार्ड, कालिदास रंगालय,पटना