Wednesday 21 March 2018

नीतू सुदीप्ति नित्या और उनका कथा संग्रह 'छँटते हुए चावल' / लता प्रासर

अनेकानेक दंशों को झेल कर भी नारियों को शक्ति देनेवाली कथाकार

लेखिका नीतू सुदीप्ति नित्या का कहानी संग्रह छटते हुए चावल सबसे अलग ढंग का कहानी संग्रह है। इन्होंनेअपनी पुस्तक अपनी माता जी को समर्पित किया है ।


स्त्री विमर्श को विस्तार देता है, इनका कहानी संग्रह। इसकी भूमिका में लिखा है लेखिका ने अपनी जीवन कथा। आत्म संवाद नाम दिया है लेखन मेरे जीवन का साधन है।और इसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह वह दिल में छेद की वजह से अपने जीवन को बहुत ही मुश्किलों से आगे बढ़ाया। बचपन बहुत गरीबी में बीता इलाज के पैसे नहीं थ । कई भाई-बहनों में एक लड़की का होना वह भी एक बीमार लड़की का होना अभिशाप होता है गरीबों के लिए और उसी अभिशाप का दंश झेल रही है नीतू सुदीप्ति नित्या। एक समय ऐसा भी आया कि जब उनका इलाज कराने के लिए मां बाप राजी हो गए मगर तब तक देर हो चुकी थी और उनकी उम्र निकल चुकी थी। अब इस दश को झेलना उनकी उनकी नियति बन चुकी है नीतू सुदीप्ति नित्या कोई साधारण नाम नहीं है एक जीवटता का प्रतीक है। इतनी मुश्किलों के बावजूद जिंदगी भले उन्हें दंश देती रहे  मगर समाज को उन्होंने एक मजबूत कड़ी दी है। 

कोई भी आदमी शरीर से कमजोर हो सकता है पैसे से कमजोर हो सकता है किंतु अगर मन में हौसला हो तो वह कुछ भी कर सकता है इसे साबित किया है नीतू सुदीप्ति नित्या ने। जब वह शुरू में कहानियां लिखने लगी तो सभी उनसे जलते थे और इन्हें मना करते थे मगर इन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कहानियां लिख लिखकर पत्रिकाओं में भेजती रहीं। एक समय वह भी आया जब इनकी कहानियां ना केवल स्थानीय पत्रिका में बल्कि देश के नामचीन पत्रिकाओं में भी छपने लगी ।यह अपने आप में बहुत ही गर्व की बात है।
इनकी कहानियों में कई रंग देखने को मिलते हैं ।

कहानी की शुरुआत 'छँटते हुए चावल' से होती है, आगे कई कहानियां हैं जैसे खोईछा, शीतल छांव,बिछावन, काला अध्याय, हम बोझ नहीं, डे नाइट, आस भरा इंतजार, खुल गई आंखें, माफ करना, एक कथा ऐसी भी, रिश्तो का ताना-बाना, बंद आंखों का बंदर और चीर हरण कुल चौदह कहानियों का संग्रह है। जब हम इन कहानियों को पढ़ते हैं तो लगता है कि सभी घटनाएं जीवंत हैं यही खासियत है नीतू सुदीप्ति नित्या की ।

वह जीवन के उन क्षणों को बांधने की कोशिश की है जो क्ष्ण बीतता तो सबके आस पास है मगर उसे शब्द देना सबके बस की बात नहीं नीतू में यह क्षमता है कि वह उनको अपने शब्दों में बांध सके। ताकि इसकी रोचकता पाठक को पढ़ने पर मजबूर करे। अपनी निडरता और अपने साहस से उन्होंने अपनी जिंदगी को एक नया मोड़ दिया और उन्होंने अपने जीवन के लिए खुद ही एक जीवन साथी चुना।



समाज के लिए एक प्रतीक है,उस समाज के लिए जहां लोग जिंदगी से निराश हो चुके हैं उनके लिए प्रतीक है नीतू की कहानियों को पढ़ना बहुत ही आत्मीय भाव देता है इसलिए नितू को साधुवाद । ऐसे ही अपने जीवन को सहेजे रखें और आगे ऊंचाइयों को छूते रहें बहुत-बहुत मुबारक अपने दोस्त नीतू का जो अपनी पुस्तक छटते हुए चावल को इतने अच्छे तरीके से लिखा। बहुत बहुत बधाई लेखिका को।
.........
आलेख - लता प्रासर
ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com

नीतू सुदीप्ति नित्या के साथ लता प्रासर


Tuesday 20 March 2018

चम्पारण के इतिहास एवं पुरातत्व पर विद्वत संगोष्ठी दरभंगा में - कुछ चित्र


















नेट पर सेट / कवयित्री - नीतू सुदीप्ति 'नित्या'

नेट पर सेट / कवयित्री - नीतू सुदीप्ति 'नित्या' 

नेट पर मैं हमेशा सेट रहती हूँ                पड़ोस में क्या हुआ नहीं जान पाती हूँ 
घर में पति और बच्चों का खाना पीना 
भी देर से देती हूँ
अरे बहनों
मै नेट पर हमेशा सेट जो रहती हूँ.

नहीं करती हूँ दोस्तों रिश्तेदारों से दुआ- सलाम 
मगर हाँ आभासी मित्रों को सुबह शाम
गुड मॉर्निंग और गुड नाइट का स्टिकर
एक से बढ़ कर एक भेजती हूँ
अरे मोबाइल कंपनी वालों
मैं नेट पर हमेशा सेट जो रहती हूँ

घर में किसी की तबीयत खराब हो जाए
कोई फर्क नहीं पड़ता 
मगर फंतासी दुनिया के अनजाने चेहरों 
की तबीयत खराब जान 
धड़ाधड़ दुआओं की पोटली 
उसके पहलू में उड़ेल देती हूँ
अरे भाइयों, 
मैं नेट पर हमेशा सेट जो रहती हूँ

पड़ोसी या रिश्तेदारों की कभी आर्थिक मदद 
नहीं करती हूँ
लेकिन आभासी मित्र-मित्राणी झूठे प्रपंच रचते हैं
और मैं दानवीर बन जाती हूँ
बाद में 'ब्लॉक' होने की खबर से 
ठगे जाने का शोक मनाती हूँ
अरे दुनिया वालों
मैं नेट पर हमेशा सेट जो रहती हूँ
........
कवयित्री - नीतू सुदीप्ति 'नित्या'
ईमेल- n.sudipti@gmail.com
मोबाइल- 7256885441
पता- बिहिया (आरा)
आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी भेज सअकते हैं- editorbiharidhamaka@yahoo.com
....
कवयित्री का परिचय:
कवयित्री ने अपने आत्मकथ्य में लिखा है कि उनके दिल में जन्म से ही छेद है. फिर भी ये बिना किसी परवाह के रचनाकर्म किये जा रहीं हैं.
जन्म- 20.11.1980
शिक्षा- मैट्रिक
प्रकाशन- हमसफर, छँटते हुए चावल (कथा संग्रह), विजय पर्व( भोजपुरी उपन्यास) प्रेस में है. प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी तथा भोजपुरी में 150 रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन
उद्देश- सामाजिक कार्य करना
संकल्प - नेत्रदान करना










Sunday 11 March 2018

कालिदास रंगालय में भोजपुरी भाषा के फिल्मों में प्रयोग पर चर्चा

कुछ दिनों पहले कालिदास रंगालय, पटना में साहित्यकार लाला आशुतोष कुमार शरण ने अपने नाटक के मंचन की संभावना के बारे में बिहार आर्ट थिएटर एवं नाटक का प्रशिक्षण देनेवाला बिहार के सबसे प्रसिद्ध संस्थान के अधिकारियों से मुलाकात की. अधिकारियों में मुक्तेश्वर सिंह और अरुण कुमार सिन्हा शामिल थे.

भोजपुरी फिल्मों में शुद्ध भोजपुरी के इस्तेमाल पर बात चली तो नाज़िर हुसैन साहब की भोजपुरी को सबसे शुद्ध माना गया. चर्चा में यह बात भी उठी कि अनेक विद्वान अवधी, ब्रजभाषा आदि को भी भोजपुरी का ही भिन्न रूप मानते हैं.