Thursday 7 June 2018

ज्ञान और अनुभव - कैंची के दो सिरे / संजीव गुप्ता

लघु निबन्ध - संजीव गुप्ता 



अक्षर ज्ञान से शुरू होकर प्रेक्षणों से गुजरता हुआ जब मनुष्य आत्मज्ञान की प्राप्ति की ओर बढ़ जाता है तो इस यात्रा की पूर्णता को ही ज्ञान की प्राप्ति कहा जाता है. अक्षर ज्ञान हमें यह बताता है कि हमसे पहले की पीढ़ियों ने क्या ज्ञान प्राप्त कर पुस्तकों में सहेजा है, प्रेक्षण यह बतलाता है कि प्रकृति में पेड़-पौधे जीव-जंतु का आचरण क्या और कैसा है और किस से किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए .आत्मज्ञान हमें यह बताता है कि प्रत्येक जीव में परमात्मा का अंश वह आत्मा है जो हमारे ही समान दुख सुख का अनुभव करता है .अतः अक्षर ज्ञान, प्रेक्षण और आत्म ज्ञान को ही संपूर्ण ज्ञान की श्रेणी में रखा गया है.
ज्ञान एक है परंतु अध्ययन और लेखन की सुविधा के लिए उसे कई विषयों में विभाजित किया गया है. कई विषय वास्तव में सीढ़ी हैं जो ज्ञान रूपी शिखर तक पहुंचने में सहायता करते हैं.
ज्ञान और अनुभव में अंतर है. व्यक्ति जो कार्य निरंतर करता है उसे उस कार्य का अनुभव होता है .अनुभव को जब व्यक्ति अक्षर ज्ञान में पिरोकर आने वाली पीढ़ियों के लिए संचित करता है तभी ज्ञान की यात्रा का प्रारंभ होता है. पुनः आने वाली पीढ़ी अक्षर ज्ञान ,प्रेक्षण और आत्म ज्ञान की यात्रा तय करती है. संसार में ज्ञान की यात्रा का यही क्रम है जो कई मानव समाज और कई देशों के विकास की दिशा तय करता है.
निष्कर्ष यह है कि प्रत्येक अनुभवी व्यक्ति को ज्ञानी नहीं समझना चाहिए और यह भी आवश्यक नहीं कि प्रत्येक ज्ञानी व्यक्ति को प्रत्येक कार्य का अनुभव हो .अनुभव और ज्ञान को निश्चित रूप से अलग समझना चाहिए तभी ज्ञानी व्यक्ति और अनुभवी व्यक्ति की पहचान हो सकती है. ज्ञान और अनुभव भिन्न होते हुए भी परस्पर पूरक हैं --ठीक उसी प्रकार जैसे कैंची के दो सिरे. यदि एक सिरा ना हो तो इसका अर्थ यह नहीं कि उससे कोई कार्य नहीं हो सकता परंतु जब भी ज्ञान और अनुभव के दोनों सिरे मिलेंगे तभी वह एक कैंची की भांति कार्य कर सकते हैं. यदि आपने अक्षर ज्ञान प्रेक्षण और आत्म ज्ञान से स्वयं को सुदृढ़ कर ही लिया है तो भी आप बड़े बुजुर्गों से जाकर मिले ताकि उनके अनुभव बटोर सकें और इस अनुभव के द्वारा ही आपका ज्ञान संपूर्ण होता है. याद रखें, सच्चा ज्ञानी व्यक्ति वही है जो ज्ञान का अर्थ समझता है ,और ज्ञान का अर्थ यही है कि आप दूसरों के अनुभव से सीख लें ना कि स्वयं को अच्छी बुरी दशा से गुजारने के पश्चात गौरव या पश्चाताप के भ्रम में पड़कर यह जीवन गुजार दें. लंबी यात्रा और संगठनात्मक जीवन -----ज्ञान और अनुभव का सर्वश्रेष्ठ अवसर हैं.
.......
आलेख - संजीव गुप्ता 
सोशल साइट  का लिंक- 
परिचय- संजीव गुप्ता एक सजग चिंतक और लेखक हैं एवं केंद्रीय सरकार के एक कार्यालय  में कार्यरत हैं.

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.