निशांत की प्रतिबद्धता उल्लेखनीय
सभी दुखी हैं
पेड़ों के कटने से
पहाड़ों के फटने से
पर सभी चुप हैं
इस चुप्पी की
सभी को मिल रही है सज़ा.
(- कुछ थे जो कवि थे)
आरा में गंभीर साहित्य सृजन की एक सशक्त परम्परा रही है। वहाँ के साहित्यकार न सिर्फ अपने प्रदेश बल्कि देश भर के साहित्यकारों को पढ़ते रहते हैं और प्रेरणा लेते रहते हैं. हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सुंदर नगर के रहनेवाले प्रसिद्ध कवि सुरेश सेन निशांत जिनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं, का निधन हो गया।
सुरेश सिंह निशांत के निधन पर आरा के साहित्यकारों ने दिनांक 24,10.2018 को 'मणिका' पत्रिका के कार्यालय में श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौक़े पर उनके रचना संस्मरण और राजेश जोशी द्वारा उनके कविता-संग्रह 'कुछ थे जो कवि थे' पर लिखा गया वक्तव्य भी अविनाश रंजन के द्वारा पढ़ा गया। बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि सेन देश के प्रसिद्ध कवियों में शुमार हैं। वे सिर्फ़ हिमाचल के कवि नहीं थे बल्कि देश की चर्चित कविताओं में उनकी कविताएं शुमार की जाती हैं।
'देशज' के संपादक और कवि अरुण शीतांश ने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हमने अभिन्न मित्र और देश के प्रमुख कवि को खो दिया है। उन्होंने पूरे हिमाचल प्रदेश की राजनीति की चर्चा की और 'चावल' कविता का पाठ किया। आलोचक व कवि सुधीर सुमन ने कहा कि ऐसे समय में किसी को अवसाद हो सकता है, पर सेन हमारे समय के ज़रूरी सवालों को उठा रहे थे, यह महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 'दु:ख-1' कविता का पाठ किया।
कवि व कथाकार सुमन कुमार सिंह ने कहा कि साहित्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को पूरा देश जानता था उन्होंने 'गुजरात' और 'पहाड़' कविता का पाठ किया।
चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि उनकी कविता आसपास की कविता है। आसमान में फैले धुएं और चिड़िया का जो वर्णन किया है वह अद्भुत है। कवि व आलोचक अविनाश रंजन ने सेन की कविताओं के बारे में राजेश जोशी के विचारों को पढ़ा।
संचालन करते हुए 'मणिका' के संपादक सिद्धार्थ वल्लभ ने 'मंदिर जाती औरतें' कविता का पाठ किया और पहल' पत्रिका में छपी कविता का ज़िक्र किया।
इस अवसर पर अंत में एक मिनट का मौन रखने के पूर्व रंगकर्मी श्रीधर शर्मा और रंजन यादव ने भी अपने विचार रखे।
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पहाड़ों के फटने से
पर सभी चुप हैं
इस चुप्पी की
सभी को मिल रही है सज़ा.
(- कुछ थे जो कवि थे)
आरा में गंभीर साहित्य सृजन की एक सशक्त परम्परा रही है। वहाँ के साहित्यकार न सिर्फ अपने प्रदेश बल्कि देश भर के साहित्यकारों को पढ़ते रहते हैं और प्रेरणा लेते रहते हैं. हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सुंदर नगर के रहनेवाले प्रसिद्ध कवि सुरेश सेन निशांत जिनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं, का निधन हो गया।
सुरेश सिंह निशांत के निधन पर आरा के साहित्यकारों ने दिनांक 24,10.2018 को 'मणिका' पत्रिका के कार्यालय में श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौक़े पर उनके रचना संस्मरण और राजेश जोशी द्वारा उनके कविता-संग्रह 'कुछ थे जो कवि थे' पर लिखा गया वक्तव्य भी अविनाश रंजन के द्वारा पढ़ा गया। बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा कि सेन देश के प्रसिद्ध कवियों में शुमार हैं। वे सिर्फ़ हिमाचल के कवि नहीं थे बल्कि देश की चर्चित कविताओं में उनकी कविताएं शुमार की जाती हैं।
'देशज' के संपादक और कवि अरुण शीतांश ने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हमने अभिन्न मित्र और देश के प्रमुख कवि को खो दिया है। उन्होंने पूरे हिमाचल प्रदेश की राजनीति की चर्चा की और 'चावल' कविता का पाठ किया। आलोचक व कवि सुधीर सुमन ने कहा कि ऐसे समय में किसी को अवसाद हो सकता है, पर सेन हमारे समय के ज़रूरी सवालों को उठा रहे थे, यह महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने 'दु:ख-1' कविता का पाठ किया।
कवि व कथाकार सुमन कुमार सिंह ने कहा कि साहित्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को पूरा देश जानता था उन्होंने 'गुजरात' और 'पहाड़' कविता का पाठ किया।
चित्रकार राकेश दिवाकर ने कहा कि उनकी कविता आसपास की कविता है। आसमान में फैले धुएं और चिड़िया का जो वर्णन किया है वह अद्भुत है। कवि व आलोचक अविनाश रंजन ने सेन की कविताओं के बारे में राजेश जोशी के विचारों को पढ़ा।
संचालन करते हुए 'मणिका' के संपादक सिद्धार्थ वल्लभ ने 'मंदिर जाती औरतें' कविता का पाठ किया और पहल' पत्रिका में छपी कविता का ज़िक्र किया।
इस अवसर पर अंत में एक मिनट का मौन रखने के पूर्व रंगकर्मी श्रीधर शर्मा और रंजन यादव ने भी अपने विचार रखे।
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