Wednesday 4 September 2019

इश्क की चुस्कियाँ / कवयित्री - अंकिता साहू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय (उ.प्र.)

कविता

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सुनो न!
चलो फिर से दिल की अदला बदली करते हैं
पर, कुछ सौदेबाजी के साथ!

तुम अपना अहम रोज़ शक्कर की तरह चाय में घोल देना
और मै अपनी नाराज़गी टी बैग की तरह
फिर दोनों साथ में गर्म इश्क़ की चुस्कियां लेंगे।

अपनी व्यस्तता को तुम जरा खूंटी में टांग देना
 मैं गुस्से को झटक कर कूड़ेदान में फेक दूंगी
फिर दोनों साथ में घर को खुशियों से सजा देंगे।

तुम अपनी परेशानियों की बाहें मेरे गले में डाल देना
मै अपने गम के आंसुओ को तेरे सीने से लगा दूंगी
फिर दोनों साथ में उस के आलिंगन का मज़ा लेंगे।

तुम अपने 'मैं' के हथौड़े को घर से बाहर फेंक देना
मै अपने गुरूर की कील दीवार से उखाड़ दूंगी
फिर दोनों साथ में 'हम' की एक सुंदर तस्वीर सजाएंगे।
...
कवयित्री - अंकिता साहू
इलाहाबाद विश्ववि. (उ.प्र.)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


7 comments:

  1. Replies
    1. धन्यवाद. यदि blogger.com पर गूगल पासवर्ड से login करके यहाँ कमेंट करेंगे तो आपका blogger.com वाला प्रोफाइल पिक और नाम दोनों यहाँ दिखेंगे.

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  2. Kya baat.. kya baat.. kya baaaaat...

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    1. कवयित्री की रचना को पसंद करने हेतु धन्यवाद.

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  3. कवयित्री की रचना को पसंद करने हेतु धन्यवाद.

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