Monday 29 July 2019

मनु कहिन (6) - जानवर कौन?

जानवर कौन?

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अब देखिए न बस कल की ही तो बात है। मैं सुबह की सैर से वापस घर की ओर लौट रहा था। मेरे घर के रास्ते में एक बडा सा लगभग चार किलोमीटर का एक फ्लाईओवर पडता है। जब उस फ्लाईओवर के बीचों-बीच जब मैं पहुंचता हूं तो क्या देखता हूँ, एक बड़ा सा घोड़ा सडक के बीचों-बीच खड़ा है। उसके दोनों पैर नीचे से टखनों के पास से बिल्कुल मुड़े हुए हैं। वो चलने मे लगभग असमर्थ है।

उसे इस हाल में देखकर मुझे दुख  के साथ साथ एक ख्याल भी आया कि बताइए जब यह घोडा स्वस्थ रहा होगा तो इसने अपने मालिक की कितनी सेवा की होगी। उसके एक इशारे पर इसने अपना तन और मन दोनों लगा दिया होगा। हो सकता है कि उसके जीविकोपार्जन का यह एक मुख्य स्तंभ भी हो। खैर! चलिए, जो आपके साथ अपने अच्छे दिन कहें या यूं कहें जवानी के दिनों में, जब यह स्वस्थ हुआ करता था,  आपकी जी जान से सेवा की, आप उसके बुरे दिनों में उसे कैसे भूल सकते हैं?  इतना कृतघ्न, इतना निर्दयी कोई कैसे हो सकता है?

हमलोग बोलचाल में उपमा दिया करते हैं कि कोई कैसे जानवरों की तरह व्यवहार कर सकता है। मनुष्य इतना निर्दयी नही हो सकता है। पर, शायद उस घोड़े को इस हाल में देखकर मेरा मिथक टूट गया। 

आप कभी कोण बदल कर देखें। थोड़ा सा धुन बदल कर देखें। अपने आप को उस हाल मे रख कर थोड़ा सोचें। थोड़ी जगह दें अपने आप को।थोड़ा सा चश्मे का नंबर बदल कर देखें। थोड़ा प्रयास तो करें। बहुत तकलीफ होगी आपको। मुझे भी हो रही है। वैज्ञानिकों ने यह तो बहुत पहले ही सिद्ध कर दिया था कि पेड़ पौधों में भी जान होती है। मेरे भाई, यह तो जानवर है। ठीक है, बेजुबान है ये। पर, इसकी एक भाषा तो है।  ये हमसे आपसे संवाद स्थापित नही कर सकता  पर, आवाज तो  इसके पास  भी है। 

जरा इसके आंखों में देखें। दर्द दिखाई देगा। एक बेचारगी भी दिखाई देगी। घोडा है यह। अपने स्वस्थ  दिनों में इसने आपकी सेवा ही की है। बिल्कुल नि:स्वार्थ सेवा। कुछ तो सिला दें इसकी सेवा का। कम से कम चैन से इसे इस दुनिया से विदा तो लेने दें। भूखे लावारिसों की तरह तो मरने के लिए  तो न छोड़ दे। यूं ही घोड़ों की जिंदगी बहुत नही होती।
( *यहां घोड़ा एक प्रतिकात्मक शब्द है )* 
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आलेख - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल आईडी - itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
   

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