Saturday 11 April 2020

इस क्रूर समय में भी / कवयित्री - रश्मि सक्सेना

कविता 

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कोरोना काल जैसे भयावने समय में भी आशावादिता को जिंदा रखनेवाली होती हैं स्त्रियाँ, उनके प्यार में सँवरे हुए बच्चे और उनकी ढाढसों  में अपनी शक्ति बटोर रहा पुरुष. पढ़िए इस कविता को जो इस काल की भी है और सार्वकालिक भी. (-सम्पादक)



इस क्रूर समय में भी 

एक स्त्री बना और सुखा रही है
घर की छत पर धूप में बैठी
पापड़, अचार, बड़िया

बच्चे बड़े मनोयोग से जोड़कर
रख रहें हैं
अपने कुछ टूटे हुए
खिलौने 

एक पुरुष ने
रोप दिया एक नन्हा पौधा
एक बड़े गमले मे

ये सभी मिलकर
जमा कर रहें हैं उदास दिनों की
गुल्लक में
अपने अपने हिस्से की आस

उम्मीद 
बुरे समय की 
भाषा के शब्दकोश में
डरावने विषाणु से कहीं अधिक
बड़ा और ताकतवर
शब्द है.
.......
कवयित्री - रश्मि सक्सेना
कवयित्री का ईमेल - saxenarashmi0912@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbejodindia@gmail.com
कविता के ऊपर दी गई टिप्पणी हेमन्त दास 'हिम' के हैं.

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