Tuesday 21 August 2018

आखर द्वारा 20.8.2013 को डॉ.तैयब हुसैन पीड़ित से वार्तालाप

भोजपुरी हिन्दी की उपभाषा नहीं बल्कि उसकी मौसी है
मॉरीशस में भोजपुरी देवनागरी की बजाय रोमन में लिखी जाने लगी है




मौलिक सोच की अभिव्यक्ति मातृभाषा में ही संभव है । ज्ञान- विज्ञान का अविष्कार अर्जित भाषा में संभव नही है। जगदीशचंद बोस हो या जापान-चीन ने मातृभाषा में ही अपना सारा काम किया है। यह बात भोजपुरी के वरिष्ठ लेखक डॉ तैयब हुसैन पीड़ित ने श्री सिमेन्ट द्वारा प्रायोजित तथा आखर एवं मसि इंक द्वारा आयोजित बातचीत में कही। बातचीत युवा लेखक डॉ जीतेन्द्र वर्मा ने की। उन्होंने भोजपुरी की स्थिति पर प्रकाश डाला।भोजपुरी हिंदी की उपभाषा है ये गलत तथ्य है भोजपुरी हिंदी की मौसी है।

भोजपुरी के पास एक व्यापक लोक साहित्य है जिसमें रोपनी, कटनी के गीत, विवाह, जन्म, मरण, बिछोह सब के गीत है। जीवन के सारे रंग के गीत भोजपुरी में है। भोजपुरी कवि के इतिहास के बारे में उन्होंने कहा कि अनिरुद्ध जी, सतीश्वर प्रसाद सहाय, हिलेश कैलाश (भोजपुरी के पहले प्रोफेसर) तिकड़ी रही है। भोजपुरी के गद्य साहित्य के बारे में उन्होंने कहा कि 1960 के बाद हिंदी साहित्य में मोहभंग पर कविता कहानी है लेकिन भोजपुरी में उससे पहले सबकुछ मौजूद है। भोजपुरी में गदर भी लिखा गया है।

भूमंडलीकरण का प्रभाव भोजपुरी पर किस प्रकार है इस बारे में उन्होंने बताते हुए कहा कि बेबी क्रिस्टर के अनुसार 3000 से 10000 भाषा, बोली है । 1951 के जनगणना के अनुसार भारत में तत्कालीन 782 भाषाएं थी जबकि 1961 में ये बढ़कर 1652 भाषाएं हो गयी। बोली से भाषा बनने का उपक्रम राजनीतिक ज्यादा रहा है। पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने हिंदी दिवस में कहा कि भोजपुरी को अष्टम अनुसूची में देना हिंदी के लिए खतरनाक है। इस देश में जानवर, पंछी, झंडा सब है लेकिन राष्ट्रीय भाषा नहीं है । राजनीतिक दबाब के कारण भाषा में ईमानदारी नहीं है।

आधुनिक समय में भोजपुरी मजबूरी की भाषा बन गयी है। मॉरीशस में भोजपुरी देवनागरी के बदले रोमन लिपि में लिखी जाने लगी है। तकनीकी शिक्षा में भोजपुरी का उपयोग हो तो भाषा बच सकती है। प्रारम्भिक शिक्षाएं स्थानीय भाषाओं में होनी चाहिए । 20 करोड़ लोग भोजपुरी बोलते है लेकीज अष्टम अनुसूची में ये भाषा नहीं है। भोजपुरी में एकजुटता नहीं है इसीलिए संघर्ष नहीं हो पाया रहा है। भोजपुरी में भिखारी ठाकुर के बारे में लेखक के बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने भोजपुरी में लोक गीत की परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने भिखारी ठाकुर के लिखे गीतों का मर्म लोगों को समझाया।

प्रसिद्ध नाटककार भिखारी ठाकुर को अकादमी मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले डॉ तैयब हुसैन ने कहा कि बिदेसिया शैली  नहीं, परंपरा है। भिखारी ठाकुर ने समाज के बड़े सच को सामने लाया है। नारी जीवन और मजदूर का वियोग उनके साहित्य में अभियुक्त हुआ है। समारोह में डॉ ब्रजभूषण मिश्र, डॉ महामाया प्रसाद विनोद, अनीश अंकुर, विभारानी श्रीवास्तव, जयप्रकश एन.के.नंदा, तुषार उपाध्याय, शिवदयाल अविनाश गौतम, जय प्रकाश आदि लोगों ने अपने बात रखे।
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आलेख- सत्यम कुमार
ईमेल- satyam.mbt@gmail.com










1 comment:

  1. हमनी के पीढ़ी वालन वाला बोल लेत बा लोग
    अगाड़ी पीढ़ी जानत रही बोली ना
    ओकरा आगे वाला पीढ़ी त जानी इतिहास किताब पढ़ी के

    बहुते निमन काल्हे के परिचर्चा रहे

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